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________________ अहो जण णिच्चलु चित्तु करेवि खणिक्क पयंपिउ मज्झु सुणेहु इहत्थि पसिद्धउ ढिल्लिहिँ इक्कु समक्खमि तुम्हहँ तासु गुणाइँ ससंक-सुहा-समकित्तिहे धामु मणोहर-माणिणि-रंजण-काम् जिणेसर-पाय-सरोय-दुरेहु सया गुरु-भत्तु गिरिंदुव धीरु अदुज्जणु सज्जण-मज्झि मणोज्जु महामइवंतहँ भावइ तेम सवंस-णहंगण-भासण-सूरु सुहोह-पयासणु धम्मुय मुत्तु दयालय वड्ढण जीवण वाहु पिया अइवल्लह वालिहे णाहु भिसं विसएसु भमंतु धरेवि।। कुभावइँ सव्वइँ णट्ठउ णेहु।। णरुत्तमु णं अवइण्णइँ सक्कु।। सुरासुरराय मणोहरणाइँ ।। सुरायले किण्णर गाइय णामु।। महामहिभालउ लोयहँ वामु।।। विसुद्ध मणोगइ जित्त सुरेहु ।। सुही-सुअहो जलहिव्व गहीरु।। णरिंदहँ चित्ति पयासिय चोज्ज।। सरोयणराहँ रसायणु जेम।। सबंधव-वग्ग मणिच्छिय पूरु।। वियाणिय जिणवर आयम-सुत्तु।। खलाणण चंद-पयासण-राहु।। उदार चरित्तउ णट्टलु साहु।। घत्ता- बहुगुणगणजुत्तहो जिणपयभत्तहो जो भासइ गुणणट्टलहो। सो पयहिँ णहंगणु रमियवरंगणु लंघइ सिरिहर हयखलहो।। 12|| अरे लोगो, अत्यन्त विषय-वासना के रस में डूबे हुए चित्त को एकाग्र करके क्षणभर के लिये मेरा भी कथन सुन लो। दुर्भावना से सर्वत्र ही नेह का हनन होता है। ___ यहाँ दिल्ली में एक सुप्रसिद्ध नरोत्तम है, जिसने शक्र (इन्द्र) को भी अवगणित (अपमानित) कर दिया है। मैं आप लोगों के लिये उसके सुर, असुर एवं नरेन्द्रों के लिये मनोहर लगने वाले गुणों की (पुनः) चर्चा करना चाहता वह नट्टल साह, जो कि शशांक-सुधा के समान धवल-कीर्ति का धाम है, स्वर्गों में किन्नर-गण जिसके नाम को गाते रहते हैं, मनोहर भामिनियों-कामिनियों के मनोरंजन के लिये कामदेव के समान, लोक में महान महिमा का आलय, जिनेश्वर के चरणकमल के लिये भ्रमर के समान, विशुद्ध मनोगति से देवों को भी जीतने वाला, सदैव गुरुभक्त, गिरीन्द्र के समान धीर, सुधी, सुखद, जलधि-समुद्र की भाँति गम्भीर, अदुर्जन, सज्जन, सुख-प्रकाशक, मागध जनों को जानने वाला, लोक-प्रकाशक, (अथवा मागध-जनों के प्रयासों को जानकर), समस्त सज्जनों के मध्य मनोज्ञ, नरेन्द्रों के चित्त को चमत्कृत (चोजु) करने वाला, महामतिवन्तों को पसन्द आने वाला, रुग्णों के लिये रसायन-औषधि के समान, अपने सवंश रूपी नभांगण को प्रतिभासित करने के लिये सूर्य के समान, समस्त बन्धु-बान्धवों की मन की अभिलाषाओं का पूरक, सुख-समूह को प्रकाशित करने के लिये साक्षात् मूर्ति के समान, जिनवर के आगम-सूत्रों का ज्ञाता, दयारूपी लता को बढ़ाने के लिये जलवाहिनी के समान, दुष्टजनों के मुखरूपी चन्द्रमा को ग्रसित करने के लिये राहु के समान था। उसकी वालिहे नामकी अत्यन्त प्रिय एवं उदारचरिता पत्नी है। घत्ता- जो विविध गुण-समूह से युक्त, जिनेन्द्र-पद-भक्त तथा जो प्रशस्त-गुणों का अटल प्रशंसक था, ऐसा वह नट्टल साहू अपने प्रतिष्ठारूपी पदों द्वारा आकाश को लाँघनेवाला तथा दुर्जनों का विनाशक था।। 12|| पासणाहचरिउ :: 265
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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