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________________ पत्ता- तं सणिवि चमक्किउ णिय-मणि संकिउ तक्खणेण तण कंपियउ। विहुणंतें णियसिरु चिंततें चिरु कण्ण-जुअलु सइँ झंपियउ।। 194 ।। 10 11/11 After hearing the highly objectionable misdeeds of Kamatha, King Arvinda becomes furious and exiles him from the Kingdom. पुणु भणिय भाय-भाविणि दिएण जाणिज्जइ लग्गउ इंगिएण।। करि मउणु म जंपइ पुरउ कासु तारिसु किउ वयणु सुणेवि तासु।। अण्णहिँ दिणि दर विहसंतियाइँ पत्थाउ लहेवि कमठहो पियाइँ।। मरुभूइ भणिउ भो चत्तबुद्धि | महु वयणे तुज्झु ण चित्तसुद्धि ।। जइ जाइ पेक्खु ता सइँ जि मुक्खु । विद्वउ सिंचिय अण्णाय रुक्खु ।। भाउज्जहे वयणे णियइ जाम सहुँ भायरेण पियदिनु ताम।। कोहाणल.जालालिंगियंगु गउ रायगेहु णं खयपयंगु।। जंपतउ भायर तणउ वित्तु तं सुणिवि णिवहो परिखुहिय चित्तु।। जाणमि जेण जि अण्णाय-रासि तेण जे मइँ सो परिहरिउ आसि ।। इउ भणिवि णिवेणाढत्त मिच्च दुप्पिच्छ-दच्छ-दिढ्यर णिभिच्च ।। घत्ता- तेहिँ जि जाएविणु हक्क करेविणु कमठु बद्ध पच्चारिउ। खर उवरि चडाविवि लोयहँ दाविवि णिय-णयरहो णीसारिउ।। 19511 घत्ता— भौजाई द्वारा वृत्तांत सुनकर मरुभूति चौंक उठा। मन ही मन में वह शंकित हो उठा, उसका सारा शरीर काँप उठा। अपना सिर धुनते हुए बहुत देर तक विचार करते हुए उसने अपने दोनों कान ढंक लिये।। 194 ।। 11/11 दुष्चरित्र कमठ को राजा अरविन्द निर्वासित कर देता हैपुनः मरुभूति द्विज ने अपनी भौजाई से कहा कि तुम्हारे आकार रूप इंगित चेष्टा आदि के संकेत से यद्यपि मैंने सब कुछ जान लिया है तथापि मौन धारण करो तथा यह वृत्तांत किसी के सामने मत कहना। देवर के ऐसे वचन सुनकर उसने वैसा ही किया। ___ अन्य किसी एक दिन कुछ-कुछ हँसते हुए कमठ की वह प्रियतमा (वरुणा) मरुभूति के पास एक प्रस्ताव लेकर आई और उससे बोली- हे मूर्खराज, मेरे कथन पर यदि तुझे पूर्ण विश्वास न हो तो तू स्वयं जाकर अपनी आँखों से देख ले, तुझे स्वयं ही विश्वास हो जायगा कि अन्याय रूपी वृक्ष विष्ठा के द्वारा सींचा जा रहा है। ___ अपनी भौजाई (वरुणा) के कथन से जब उसने भाई कमठ के साथ अपनी प्रियतमा वसुन्धरी को देखा तो वह उसका तन-वदन क्रोधानल से झुलसने लगा। प्रलयकालीन चण्ड सूर्य के समान मरुभूति तुरन्त ही राजमहल गया। वहाँ उसने अपनी भाई कमठ की करतूतें बतलाईं। उन्हें सुनकर राजा अरविन्द का चित्त भी क्षुब्ध हो उठा। उसने कहा कि अन्याय की राशि के समान उस कमठ को मैं पहले से ही जानता था इसीलिये मैंने उसका परिहार कर उसे पुरोहित पद प्रदान नहीं किया था। फिर उसने दुष्प्रेक्ष्य, दक्ष, साहसी और निर्भीक भृत्यों को (उस कमठ के घर-) उसे पकड़कर लाने हेतु भेजाघत्ता- उन आज्ञाकारी भृत्यों ने भी कमठ के घर जाकर उसे ललकार कर बुलाया, उसकी भर्त्सना की और बाँध लिया। तत्पश्चात उसे गधे के ऊपर चढ़ाकर लोगों को दिखाकर उसे नगर के बाहर निकाल दिया।। 195।। पासणाहचरिउ :: 227
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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