SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 10 15 11/10 Hearing about the immoral relations of his wife with Kamatha, Marubhuti plunges into deep grief and sorrow. जा चंद मुहुल्लिए कमठु बहुल्लिए सहु रमइ । णिम्मल कुलवंतहँ उवसमवंतहँ पहु कमइ ।। ता साहिवि मेइणि धण-कण दाइणि आइयउ । मयमत्त-मयंगइँ तुंग तुरंगइँ राइयउ ।। अरविंदु णरेसरु सुरभेरीसरु णियणयरे । जसरासि विहूसिउ बइरिअ दूसिउ बहु खयरे । । मरुभूइवि आवेवि कमठहो पणवेवि भायरहो । आलिंगिवि अंगउ पुणु तुद्वंगउ णियघरहो || ताइव कंतहँ ससियरकंत मुहकमलं । पेक्खे विणु हरिसउ पणउ पदरिसिउ अइविमलं । । जं धणु अरविंदे जिय रिउ बिदें अल्लविउ | तं तेण सिणेहें तहे रसणेहें अल्लविउ ।। पणविउ भाउज्जहं पुणु जणपुज्जहे बहु विणएँ । ताए वि अहिदिउ सो जणवंदिउ अइपणएँ । । पुणु पुरउ सरेविणु पाणि धरेविणु देवरहो । पिययम विलसिउ जिह वज्जरियउ तिह दियवरहो ।। 11/10 विजेता मरुभूति घर लौट आता है और अपनी भाभी से अपनी पत्नी वसुन्धरी के काले कारनामे सुनकर दुखी हो जाता है- जब चन्द्रवदनी अनुज वधु - वसुन्धरी के साथ वह कमठ रमण भोग कर रहा था और अपनी निर्दोष कुल परम्परा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर रहा था, तभी धन-धान्य प्रदान करने वाली पृथिवी को जीत कर, मदोन्मत्त हाथियों एवं उन्नत जाति के घोड़ों से सुशोभित यशोराशि से विभूषित, बैरियों को दूषित कर, दुन्दुभि-वाद्यों के निनाद के साथ खेचरों से व्याप्त वह राजा अरविन्द अपने नगर लौटा। राज पुरोहित मरुभूति भी रणक्षेत्र से लौटकर अपने भाई कमठ के पास गया और प्रणाम कर उनका आलिंगन किया । तत्पश्चात् सन्तुष्टांग वह अपने घर गया। वहाँ जाकर वह चन्द्रकिरण के समान सुन्दर अपनी कान्ता वसुन्धरी का मुख-कमल देखकर अत्यन्त हर्षित हुआ और उसके प्रति अपना अतिशय निर्मल प्रेम प्रदर्शित किया। उसने राजा अरविन्द के द्वारा शत्रुओं से जीता हुआ जो धन भेंट स्वरूप प्राप्त किया था, वह भी उसने उसे स्नेहपूर्वक अपनी पत्नी को भेंट कर दिया। उसके बाद उस मरुभूति ने जन पूज्य अपनी भौजाई को अत्यन्त विनम्रता पूर्वक प्रणाम किया। भौजाई ने भी जनवन्दित उस मरुभूति का अत्यन्त अनुरागपूर्वक अभिनंदन किया । पुनः आगे बढ़कर अपने उस द्विजवर देवर (मरुभूति) का हाथ पकड़कर अपने प्रियतम कमठ का वसुन्धरी के साथ हुए विलास - विभ्रमों सम्बन्धी समस्त वृत्तांत सुना दिया । 226 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy