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________________ 10 बालुवि पहाविउ मेरुहि भरेण खीरण्णव सलिलहिँ सुरवरेण ।। लीलएँ मयरद्धउ जित्तु जेण णिम्मल तिणाण परमेसरेण।। णीसेसुवि जाणिउ रायमग्गु समरंगणि जउणु णरिंदु भग्गु।। मामहो दिण्णु णिक्कंटु रज्जु जाणेवि जगु चिंतिउ मोक्खकज्जु ।। एरिस गुण-जुत्तउ गुण-णिहाणु खयरामर-णर-विसहरपहाणु।। सो किं तणुरुह रोवियइ माए मेल्लियइ ण जो लक्खणरमाए।। अवरु वि सुणु केवलणाण जुत्तु आविहइ एत्थु दिवसहि णिरुत्तु।। इय संबोहिय जा वम्मदेवि ता पणवेवि आसीवाउ लेवि।। घत्ता- णट्टलु व मणोहरु वरगुण-सिरिहरु अमल-जसेण पसाहिउ।। लूरिय रिउ वंसत्थले णयरि कुसत्थले गउ रविकित्ति णराहिउ ।। 114 ।। Colophon इय-सिरि पासचरित्तं रइयं बहसिरिहरेण गणभरियं । अणुमण्णियं मणोज्जं णट्टल-णामेण भवेण|| छ।। जउणारिमाणहरणे पासकमारस्स चारु-णिक्खवणे। हयसेण-सोय-जणणे छटठी संधी-परिछेओ सम्मत्तो।। छ।। Blessings to Sāhu Nastala, the inspirer यः सर्वदा शुचिरनागत कार्यवेदी त्यागी-गुणी-शुभमति-सुभगो विवेकी। श्रीमान् मंदरुचिरप्रतिमो यशस्वी जीयादसौ जगति-नट्टल नामधेयः ।। छ।। में उस इन्द्र द्वारा सुमेरु पर्वत पर क्षीरसागर के जल से अभिषेक प्राप्त किया था, जिसने लीलापूर्वक ही कामदेव को जीत लिया था, जो निर्मल तीन ज्ञान का धारी था, जिसने समस्त राजमार्ग (राजनीति) को जान लिया था, जिसने समरभूमि से यवनराज को पराजित कर बाँध लिया था, और अपने मामा (रविकीर्ति) के लिये निष्कण्टक राज्य सौंप दिया था तथा जगत् के स्वभाव को जानकर अब मोक्ष-कार्य को साधने का विचार किया है। ऐसे गुण-समृद्ध, गुण-निधान, विद्याधरों, देवेन्द्रों एवं नागेन्द्रों में प्रधान अपने उस सुन्दर लक्षणांकित पुत्र के लिये हे माते, आप क्यों रुदन कर रही हैं? और भी सुनिए कि जब वह (पार्श्व) केवलज्ञान प्राप्त कर लेंगे, तब कुछ ही दिनों में वे विहार करते हुए यहाँ अवश्य ही आयेंगे। इस प्रकार उन्होंने वामादेवी को सम्बोधित किया और प्रणाम कर आशीर्वाद लेकर चले गये। घत्ता- धवल-यश से प्रसाधित नटल के समान मनोहर और गुण-समृद्ध, बुध श्रीधर के समान श्रेष्ठ, वंसस्थल के शत्रुओं को जडमल से उखाड देने वाला, वह नराधिप रविकीर्ति अपने कशस्थल नगर में वापिस लौट आया। (114) पुष्पिका मनोज्ञ एवं गुणभरित श्री पार्श्वनाथ-चरित की रचना बुध श्रीधर ने की है, जिसका अनुमोदन नट्टल नाम के भव्य (साहू) ने किया है। इस प्रकार यवनराज शत्रु के मान-हरण, पार्श्वकुमार के सुन्दर निष्क्रमण तथा राजा हयसेन एवं वामादेवी के शोक का वर्णन करने वाली छठी सन्धि (परिच्छेद) समाप्त हुई। आश्रयदाता नट्टल साहू के लिये आशीर्वाद जो निरन्तर पवित्र आचरण वाला, अनागत कार्यों का जानकार, त्यागी, गुणी, शुभमति, सुभग, विवेकी, श्रीमन्त, भद्र-रुचियों वाला और जो अप्रतिम यशस्वी है, ऐसा नट्टल नामधारी (आश्रयदाता) संसार में नन्दित-वर्धित रहे। पासणाहचरिउ :: 133
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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