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________________ हा पुत्त भणंती मुच्छ पत्त एत्यंतरे कवि चंदणु लयंति कवि धाविय जल-सिंचणु करंति कह कहव पुणुट्ठिय संभरंति हा तं मुहु कहि पेच्छमि मणोज्जु ते कर ते पय ते बाहुदंड कहिँ पेच्छमि मण वीसामठाम हा-हा पइँ बिणु गुणरयणजुत्त गलियंबर चेयण-रहिय गत्त।। धाविय कवि सिसिराणलु घिवंति।। कवि वम्मदेवि विज्जणु धरंति।। णिय तणुरुहु अंसुहि महि भरंति।। तं वच्छत्थलु जं जणिय चोज्जु ।। हा पुत्त परज्जिय कुसुम कंड।। ससहर-मंडल संलिहिय णाम।। मइ माय भणेसइ कवणु पुत्त।। घत्ता-इय सोयइ जा तणुरुहु ता मइलिय-मुहुँ परियण सुह-संकोयणु। रोअइ सोआदण्णउ महिहि णिसण्णउ अंसुज्जोलिय लोयणु ।। 113 ।। 6/19 Wise and sympathetic persons of the kingdom console the grief striken mother Vāmādevī. Ravikirti returns back to Kuśasthala. तहिँ अवसरि भासिउ बुहयणेहिँ णिय गुणगण रंजिय सुरगणेहिँ।। मा रुवहि माए सुमरिवि कुमारु मुहू लुहेवि देवि सुणु वयणु सारु।। रोविज्जइ सो जो होइ हीणु मइ विहव परक्कम चाय खीणु।। परमेसरु पुणु सग्गहो समाउ अवयरेवि गम्भि तुह पुत्त जाउ।। आश्चर्य (चोज्जु) उत्पन्न करने वाला तेरा वह वक्षस्थल, वे दोनों हाथ, दोनों पैर, वे बाहुदण्ड कहाँ देखने को मिलेंगे? कुसुम कंड (काम-बाण) को पराजित करने वाले, हाय पुत्र, अब मैं तुझे कैसे देख पाऊँगी? हाय मेरे मन के विश्राम-धाम, तेरा नाम तो चन्द्रमण्डल में लिखा हुआ है। हाय, हाय गुण रूपी रत्नों से समृद्ध हे मेरे पुत्र, तेरे बिना अब मुझे माँ कहकर कौन पुकारेगा ? घत्ता- इस प्रकार वह माता वामादेवी अपने पुत्र के लिये विलाप कर रही थी, तभी उसके दुख से दुखी, म्लान मुख लिये परिजन लोग अपना-अपना सुख छोड़कर शोकाकुल होकर सभी लोग रुदन करने लगे और भूमि पर बैठकर अपने आंसुओं को बहाने लगे। (113) 6/19 महामति बुधजनों ने शोकाकुल माता वामादेवी को सम्बोधित किया। रविकीर्ति वाणारसी से अकेला ही वापिस कुशस्थल लौट आता हैउसी अवसर पर अपने गुण-समूह से देवों को भी रंजित कर देने वाले बुधजनों ने माता को सम्बोधित करते हुए कहा— हे माते, कुमार (पार्श्व) का स्मरण कर रोइए मत। हे देवी, मुख धोकर हमारे सारभूत वचनों को सुनिए रोता वही है, जो हीन-वृत्ति का होता है और जो मति से, विभव से, पराक्रम से और त्याग से क्षीण होता है। परमेश्वर (पार्श्व) तो स्वर्ग से आये थे और आपके गर्भ में आकर पुत्र रूप में अवतरित हुए थे। जिसने बचपन 132 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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