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________________ 5 10 सामी संधी 7/1 While wandering ascetic Pārśwa comes to Bhimaṭawī, a very dense forest. घत्ता - एत्थंतरे दुद्धर तवयरणु खयरोरयणर- सुरवर सरणु । भवियण-मण-गय-संसय-हरणु वर विमलणाण लच्छी सरणु । । छ ।। वत्थु छन्द - विमल तवसिरिणारि रंजंतु । मउ भव-भडहो मंजंतु मणि महंतु सिव सोक्ख संगमु । चूरंतु मिच्छत्ततरु जिय णिरंगु मुणि-णियर पुंगमु । । कूर-करण पक्कल करडि कुंभत्थलइँ दलंतु । विहरइ पासु जिणाहिवइ मणरुह माणु मलंतु । । छ । । मिच्छादंसणेक्कु छिंदंतउ तिरयण रयणाहरणु धरंतउ पवियल पंचायार चरंतउ सत्त तच्च पवियारु रयंतउ णव य-विहि भावंतु सुसंतउ एयारह अंगइं पयडंतउ बारह वय सावयहँ गणतउ अइदूसह दो दोस मुअंतउ । । चउविह आराहण सुमरंतउ ।। छायासय-सरूव सुमरंतउ ।। अट्ठ सिद्ध गुणु सिरि आयंतउ ।। दहविह धम्मु जइणु पोसंतउ ।। || तेरहविहु चारित्तु चरंतउ । । 134 :: पासणाहचरिउ 7/1 पार्श्व मुनि की साधना का वर्णन, वे विहार करते हुए भीमाटी - वन में पहुँचते हैं घत्ता— तत्पश्चात् खेचर, उरग, नर एवं सुरों को शरण देने वाले, भव्यजनों के मन में व्याप्त संशय का हरण करने वाले, उत्तम निर्मल ज्ञान-लक्ष्मी के आश्रय स्थल वे पार्श्व प्रभु दुर्धर तपश्चरण करने लगे वत्थु (वस्तु) छन्द - निर्मल तप- लक्ष्मी रूपी नारी को रंजित करते हुए, संसार भट (कामदेव) के मद को भंग करते हुए, अपने मन में महान् शिव-सुख के संग का अनुभव करते हुए, मिथ्यात्व रूपी वृक्ष को चूर करते हुए, अनंग को वश में किये हुए, मुनि संघ में सर्वश्रेष्ठ, क्रूर इन्द्रियरूपी दर्पीले गज़ के कुभ्भस्थल का दलन करते हुए, काम का मान-मर्दन करते हुए, वे जिनाधिपति पार्श्व (पृथिवीमण्डल पर) विहार करने लगे । एक मिथ्यादर्शन का छेदन करते हुए, अतिदुस्सह राग एवं द्वेष इन दोनों का त्याग करते.हुए, रत्नत्रय रूपी तीन रत्नाभरणों को धारण किये हुए, चार प्रकार की आराधना का स्मरण करते हुए, पाँच प्रकार के निर्मल आचारों का आचरण करते हुए, षडावश्यकों के स्वरूप का उत्तम विधि से स्मरण करते हुए, सप्ततत्वों का ध्यान - चिन्तन करते हुए, सिद्धों के अष्ट गुणों की लक्ष्मी को प्राप्त करते हुए, नव-नयों की विधि की सुशान्त भाव से भावना करते हुए, दस प्रकार के धर्म का यत्नपूर्वक पोषण करते हुए, ग्यारह प्रकार के अंगागमों को प्रकट करते हुए. . . . श्रावकों के लिये बारह प्रकार के व्रतों का उपदेश करते हुए, तेरह प्रकार के चारित्र का पालन करते हुए, चौदह प्रकार के
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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