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________________ 6/10 Seeing the snake smeared with blood Prince Pārswa develops himself the feeling of renunciation. Due to the effect of Namokara Mantra, given by Prince Parswa, the snake, after his death, takes birth in the Heaven as Dharnendra Deva. On the other hand the indignant Kamatha, after his death becomes a Damon God (Asurendra Deva) named Meghamālina. तहो धाएँ विसहरु छिण्णु जाम सकलुस तवसिहिँ उवहसिउ ताम।। उवहारौं तहो अहिमाणु जाउ अहिमाणे विरएवि असण-चाउ।। कइवय दिणेहिँ पंचत्तु पत्तु संजाउ सग्गे विप्फुरिय गत्तु।। णामेण पसिद्धउ मेहमालि असुरिंदु सुरुइपह अंसुमालि।। एत्तहे पुणु वम्मा-तणुरुहेण संसार-गहिर-महणारुहेण।। पेक्खेवि रुहिरारुण तणु भुअंगु । गुरुयर पहार दुहपीडियंगु।। करुणइँ तहो दिण्णउ कण्णि जाउ णिसुणंतु सोवि णिद्दलिय काउ।। मेल्लेवि वि सदेहु धरणिंदु जाउ पायालि तिपल्लहिँ परिमियाउ।। पेक्खेवि दुजीहु परिचत्तपाणु चिंतइ कुमारु हय-कुसुम-वाणु।। किं लच्छिए महु किं भूसणेण अइदुल्लह णरभव दूसणेण।। खणदिट्ठ णट्ठ जहिँ जीवियव्यु सरयब्भ-गब्म-संकासु दबु ।। तहिं लहु विरयमि तउ घोरु वीरु उववासहिँ परि सोसमि सरीरु।। दूरुज्झिवि बहिरंतरु पसंगु तणु मणु वयणहिँ णिज्जिय णिरंगु।। 6/10 खून से लथपथ भुजंग को देखकर पार्व को वैराग्य हो जाता है | णमोकार-मन्त्र के प्रभाव से वह भुजंग मर कर धरणेन्द्र देव का जन्म प्राप्त करता है और इधर क्रोधित कमठ मरकर मेघमाली नामक असुरेन्द्र-देव होता हैकमठ द्वारा किये गये प्रहार से जब वह विषधर छिन्न-भिन्न हो गया, तब कलुषित मन वाले तापसों ने उस तापस (कमठ) का बड़ा उपहास किया। उस उपहास को देखकर कमठ का अभिमान जाग उठा और इसी (अभिमान) के चलते उसने अशन-त्याग का व्रत ले लिया और कुछ ही दिनों में मरकर वह स्वर्ग में सूर्यप्रभा को मन्द करने वाले स्फुरायमान शरीर का धारी होकर मेघमाली नामका असुरेन्द्र हो गया। और इधर, संसारोदधि का गम्भीर रूप से मर्थन करने वाले वामादेवी के पुत्र पार्श्व ने जब कमठ द्वारा किये गये कठोर प्रहार से पीडित अंग वाले उस भुजंग के लाल-लाल रक्त से लथपथ कटे-फटे शरीर को तडपता हुआ देखा तो अत्यन्त करुणा पूर्वक उन्होंने उस (भुजंग) के कान में मन्त्रोच्चारण किया। कटे-फटे शरीरवाले उस भुजंग ने भी उसे (ध्यानपूर्वक) सुना और मृत्यु को प्राप्त हुआ। वह पाताल लोक में तीन पल्य प्रमाण आयुष्य वाला धरणेन्द्र देव हुआ। उस द्विजिह (सर्प) को मरा हुआ देखकर कामबाणों को नष्ट करने वाले उन कुमार पार्श्व ने चिन्तन किया मुझे लक्ष्मी से क्या (प्रयोजन) और इन आभूषणों से भी क्या (प्रयोजन)? इनसे अति दुर्लभ नर-भव को दूषित क्यों किया जाय? जहाँ शारीरिक जीवन क्षणभर में देखते ही देखते नष्ट हो जाता हैं, यह द्रव्यादि सम्पत्ति भी शरदकालीन मेघ के समान क्षणिक है। अतः मुझे तत्काल ही वैराग्य धारण कर कठोर वीर-तप करना चाहिए और उपवासों के द्वारा शरीर का शोषण करना चाहिए। मुझे बाह्याभ्यन्तर-प्रसंग (परिग्रह) दूर से ही छोड़ देना चाहिए और तन-मन एवं वचन से काम को जीतना चाहिए। 122 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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