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________________ घत्ता- जं उप्पाएवि केवल पावेवि तव बलु तिजय वत्थु जाणिज्जइ। अविणस्सर सुहकारिणि मुणि-मण-हारिणि मोक्खलच्छि माणिज्जइ।। 105 ।। 15 6/11 Renunciation of Pārswa. Lord Indra arranges his auspecious bath (Abhișeka) ceremony with the holy water of Ksheera-Sāgara. इय चिंतवंतु तवसिरि वरंतु।। हयसेणु पुत्तु गुणरयण जुत्तु।। लोयंतिएहिँ ससियंतिएहिँ।। जंपिउ जईसु णिज्जयरईसु।। तुहुँ देव धण्णु परिचत्तमण्णु।। णिज्जियकसाउ वज्जिय विसाउ।। कुरु धम्ममग्गु दरिसहिँ समग्गु।। सग्गापवग्गु जणु पाव लग्गु।। संबोह सामि सिवमग्ग गामि।। इय भणेवि जाम पल्लट्ट ताम।। आवेवि जवेण तियसाहिवेण।। णियमिय मणेण वरमणि गणेण।। णिम्मियउ जाणु भासंत भाणु।। तहिँ चडिउ पासु परिगलिय पासु।। तपोबल को प्राप्त कर. केवलज्ञान को उत्पन्न कर मझे त्रिलोक के तत्वों को जानना चाहिए और अविनश्वर सुख की कारण तथा महामुनियों के मन को हरण करने वाली मोक्ष-लक्ष्मी का आलिंगन करना चाहिए। (105) 6/11 पार्व को वैराग्य| इन्द्र ने क्षीरसागर के पवित्र जल से उनका अभिषेक कियाइस प्रकार गुणरत्नों से युक्त वे हयसेन-पुत्र कुमार पार्श्व अपनी (सांसारिक) स्थिति पर विचार करते हुए तपश्री को वरण करने के लिये जब तैयार हए, तभी चन्द्रमा के समान कान्ति वाले लौकान्तिक देव वहाँ आये और कामविजेता यतीश (पार्श्व) से निवेदन किया कि हे देव, आप धन्य हैं, जो अपने क्रोध का त्याग कर दिया है, कषायों को निर्जित कर दिया है और विषाद शोक करना छोड़ दिया है, अब आप धर्म मार्ग का प्रवर्तन कीजिये और सभी को स्वर्गापवर्ग के मार्ग का दर्शन कराइये। पाप-मार्ग में लगे हुए लोगों के लिये हे शिवमार्ग गामिन्, हे स्वामिन्, आप सम्बोधित कीजिये। यह प्रार्थना कर जब वे लौकान्तिक देव अपने-अपने स्थान पर वापिस लौट गये, तभी त्रिदशेन्द्र ने तत्काल ही वहां आकर नियमित (स्थिर एकाग्र) मन से श्रेष्ठ मणि-रत्नों द्वारा सूर्य के समान भास्वर एक यान निर्मित किया। भव-जाल को नष्ट करने वाले वे पार्श्व प्रभु, उस पर चढ़े। सर्वप्रथम मनुष्यों द्वारा, और तत्पश्चात् सुरवरों द्वारा पासणाहचरिउ :: 123
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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