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The strength of Yavanrāja described.
दुवइ — छुडु पहरण पहार परिपीडिउ परबलु जंतु दिट्ठओ ।
ता कलयलु सुरेहिँ किउ णहयले रविकित्ति वि पहिदुओ । । छ । ।
एत्यंतरेण
उणे समत्ते
बहु मच्छरल्ल
पक्कर करिवि सत्ति
धाविय तुरंत
पहुर सरंत
मरु-मरु भणंत
ओरालि लिंत
कण्णाड लाड
तावियड दविड
भरुहच्छु कच्छु डिंडीर विंझ
कोस मरट्ठ यहि असेस
णिज्जिणिय केम
कोवि छिण्णु के
कोवि धरेवि पाए
कोवि हियए विद्धु
णिमिसंतरेण । ।
वियसंतवत्ते ।।
80 :: पासणाहचरिउ
संगरिरसल्ल ।।
पयडियससत्ति ।।
रुइ विप्फुरंत ।।
जयसिरि वरंत ।।
विंभर जणंत ।।
रेक्कारु दिंत ।।
कोंकण वराड ।।
भूमाय पयड ।।
अइवियड वच्छ || अहियहिँ दुसज्झ ।।
सोरट्ठ धिट्ठ ।।
परबल णरेस ।।
करि हरिहिँ जेम ||
तरुराइ जेम ||
खित्तउ विहाए || वाहिँ विरुद्ध ।।
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यवनराज की पराक्रम-शक्ति- .
द्विपदी - शस्त्रों के पूर्ण प्रहार से परिपीडित पर-बल ( यवनराज) को युद्धभूमि से पलायन करते हुए जब देखा, तब देवों ने तत्काल ही नभस्तल में कलकल - निनाद किया (जयध्वनि की) और उसे सुनकर राजा रविकीर्ति हर्षोन्मत हो उठा।
इसी बीच, निमिष मात्र में ही जउणराज ( यवनराज) का विकसित वदन वाला, छली-कपटी, युद्धरसिक, अपनी शक्ति का परिचय देता हुआ प्रकृष्ट शक्ति सम्पन्न हाथी पर आरूढ होकर अपनी युद्धरुचि का प्रदर्शन करता हुआ एक भक्त अपने स्वामी नरेश के ऋण का स्मरण करता हुआ, जयश्री का वरण करता हुआ, मारो, मारो, चिल्लाता हुआ लोगों को विस्मय में डालता हुआ चक्कर लगाता हुआ और 'रे' कार देता हुआ तुरन्त झपटा।
यवनराज के उस पराक्रमी भक्त ने कर्नाटक, लाट, कोंकण, वराट, ताप्तितट (तावियड) द्रविड, भू-भाग में प्रकट भृगुकच्छ (भडौंच), कच्छ, अतिविकट समझा जाने वाला वत्स, शत्रुओं के लिये अत्यन्त दुःसाध्य समझे जाने वाले डिंडीर एवं विन्ध्य, कोसल, महाराष्ट्र, एवं धृष्ट सौराष्ट्र के राजाओं को साथ में लेकर शत्रुपथ (रविकीर्ति पक्ष) को किस प्रकार जीत लिया? ठीक उसी प्रकार जीत लिया, जिस प्रकार कि हाथी सिंह के द्वारा जीत लिया जाता है। कोई-कोई किस प्रकार छिन्न-भिन्न कर दिये गये ? ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि वृक्ष-पंक्तियाँ काट डाली जाती हैं।