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________________ कासुवि कवालु चूरिय रहाइँ तासिय तुरंग दारिय करिंद फाडिय धयाइँ खेडिय भडाइँ तोडिउ रवालु।। दिढ पग्गहाई।। मरु चंचलंग।। दूसिय णरिंद।। चामर चयाइँ।। वयणुभडाइँ।। 25 घत्ता- हयगय-रह-भडयण सयदलहिँ सहइ रणावणि झत्ति समायहो। णाणा रसोइ णं वित्थरिय रणसिरियए णिमित्तु जमरायहो।। 71 ।। - 4/13 The vigourus fighting-power of King Ravikīrti. वइ- पेक्खेवि खीण सत्ति परिणिज्जिय रिउ वावल्ल सल्लिया। सेंधव-सोण-कीर-हम्मीर वि संगरु मेल्लिय चल्लिया।। छ।। णिव सक्कवम्म णरणाह पुत्तु रविकित्ति समुट्ठिउ कलयलंतु भग्गउ णियपरियणु धीरवंतु जयसिरि-पडाय संगहण-धुत्तु ।। रहवरे चडेवि पडिभड खलंतु।। अवियल वाणावलि खिवंतु।। ___ किसी-किसी ने शत्रु-भट के पैर पकड़कर उसे आकाश में उछाल दिया। किसी शत्रु-सुभट के हृदय को वाणों से छलनी कर दिया, किसी शत्रु के सुन्दर कपाल को फोड़ डाला, प्रसाधनों द्वारा सुदृढ़ बनाये गये रथों को भी चूरचूर कर डाला। हवा को भी मात देने वाले चंचल घोड़ों को संत्रस्त कर दिया, शत्रु राजाओं के उत्साह को दूषित कर दिया, ध्वजाओं को फाड़ डाला, चामर-समूहों को क्षार-क्षार कर डाला तथा उद्धत शत्रुभटों के मुखों को खण्डित (मखों को नोंच-नोंच कर विरुपित) कर डाला। घत्ता- शत्रुओं के घोड़े, हाथी, रथ एवं सुभटों के सैकड़ों-सैकड़ों टुकड़ों से तत्काल ही वह रणभूमि ऐसे सुशोभित हो रही थी, मानां समागत यमराज (रूपी पाहुने) के निमित्त रण-लक्ष्मी ने उस समरभूमि में नाना-प्रकार की रसोई को ही विस्तारित कर दिया हो। (71) 4/13 राजा रविकीर्ति का शौर्य-वीर्य-पराक्रम द्विपदी- शत्रु द्वारा जीत लिये जाने पर अपनी निराश एवं क्षीण-शक्ति-सेना को देखकर सैंधव, शोण, कीर और हम्मीर देश के राजा बड़े ही व्याकुल हुए और घायल हो जाने के कारण युद्ध को छोड़कर चल दिये। तब जयश्री की पताका का संग्रहण करने में चतुर शक्रवर्मा का वह पुत्र राजा रविकीर्ति कलकल निनाद करता हुआ उठा और जब अपने रथ पर सवार हुआ तो प्रतिभटों में खलबली मच गई। उसने भागते हुए अपने परिजनों को धैर्य बँधाया। अविरल गति से वह ऐसी वाणावली छोड़ता था, जो प्रज्वलित अग्नि में घी डालने जैसी आग उगलती थी। पासणाहचरिउ :: 81
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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