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________________ 5 4/11 Brave King Ravikīrti destroys very badly all the arms and armaments and other battle resources of Yavanrāja and chased him away from the battle-field. 10 दुवइ - उब्भड भिउडि भंग भड भीसणे सइँ उट्ठिए णराहिवे । वर वीराहिमाण- सिरि-रंजिए रिउमयगल मयाहिवे । । छ । । धाविया तार णेवाल जालंधरा सेंधवा-सोण-पंचाल - भीमाणणा मालवीयास-टक्का खसा-दुद्दमा सामिणो भूरिदाणं सरता मणे साउहं देवि जुज्झति संकुज्झिया केवि संधेवि वाणालि वाणासणे केवि चक्केण छिंदंति सूरा सिरं केवि सत्तीहिँ भिंदंति वच्छत्थलं केवि मेल्लंति सेलं समुल्लाविया जंति उम्मग्ग लग्गा हयाणं धडा घत्ता कीर- हम्मीर- गज्जंताण कंधरा ।। ाइँ ओरालि मेल्लंत पंचाणणा ।। णं दिसासभाणत्थ भी कद्दमा ।। वज्जिऊणं पियापुत्तमोहं रणे ।। झत्ति कुंग्ग भिण्णंगणो मुज्झिया ।। कुंभ - कुंभं वियारंति संतासणे ।। कुंडललग्ग माणिक्कभा भासिरं । । माणियाणेयणारी- थणोरुत्थलं ।। वीरलच्छी विलासेण संभाविया ।। तुट्टिसीसा वि जुज्झंति सूरा भडा ।। जुज्झति रविकित्तिहिँ भडहिँ भग्गु असेसु जउणहो साहणु । गेण्हंतु याण मेलंतु मउ णाणाविह संगहिय पसाहणु ।। 70 ।। 4/11 रण-प्रचण्ड राजा रविकीर्ति यवनराज की समस्त रण - नष्ट कर देता है और उसे रणभूमि से खदेड़ देता है— साधन-सामग्री द्विपदी— उद्भट तथा भ्रकुटि-भंग वाले, शत्रु-भटों के लिये भीषण रौद्र रूप वाले, श्रेष्ठ वीरों की अभिमानश्री से रंजित और शत्रु रूपी गजों के लिये सिंह के समान राजा रविकीर्ति को स्वयं ही आगे बढ़ता हुआ देखकरउस भीषण रण में नेपाल, जालन्धर, कीर, हम्मीर (हमीरपुर) देशों के राजागण मदोन्मत गजों के समान चिंघाड़ते हुए तुरन्त ही दौड़ पड़े। सिन्धु, सोण एवं भयानक मुखवाले पांचाल नरेश तो ऐसे दौड़े, मानों गर्जना करते हुए सिंह ही दौड़ पड़े हों । मालव, आस, टक्क तथा सूर्य की किरणों की प्रभा को भी मलिन कर देने वाले दुर्दान्त खस राजा गण अपने स्वामी के विपुल दानों का मन में स्मरण करते हुए अपनी-अपनी प्रियतमाओं एवं पुत्रों के प्रति मोह को छोड़कर, आयुधों को (निरस्त्र ) प्रतिपक्षियों को प्रदान कर निर्भीकता पूर्वक उनसे जूझ रहे थे और कुन्ताग्रों से भिन्न अंग होकर भी तत्काल मूर्च्छित नहीं हो रहे थे प्रत्युत लगातर युद्धरत बने रहे। कई सुभट सन्त्रासकारक धनुष पर बाणावलियाँ साधकर गज- कम्भों को विदीर्ण कर रहे थे। कोई-कोई शूरवीर माणिक्यों की प्रभा से सुशोभित कुण्डलों से युक्त सुभटों के सिरों को चक्र से काट डालते थे । कोई-कोई मानी सुभट अपनी शक्ति से अनेक मानिनी नारीजनों के घनस्तनों तथा उरुस्थलों का भोग करने वालों के वक्षस्थलों को भेद रहे थे और जय-लक्ष्मी की विलास-क्रीड़ा से सम्भावित (सम्मानित) कोई-कोई वीर प्रतिपक्षियों को ललकार कर उन पर शैल-शस्त्र से प्रहार कर रहे थे । घोड़ों के धड़ उन्मार्गगामी होकर गिर रहे थे और अनेक शूरवीर सुभटों के सिरों के टूट जाने पर भी वे युद्ध में जूझ रहे थे। घत्ता - युद्ध में जूझते हुए राजा रविकीर्ति एवं उनके सुभटों ने यवनराज के समस्त रण-साधन नष्ट कर डालें, इस कारण एकत्र किये हुए नाना प्रकार के प्रसाधनों को वहीं छोड़कर अपने दर्प को भुलाकर अपने प्राणों की रक्षा हेतु वह यवनराज अपने सुभटों के साथ वहाँ से भाग खड़ा हुआ । (70) पासणाहचरिउ :: 79
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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