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अथ श्री संघपट्टक तेने विषे गुरू महाराजनो उपदेश प्रवेश पामतो नथी बारणे नीकली जाय जे जेम जलवमे संपूर्ण नरेला कुंल उपर जेटलुं पाणी पो ते सर्वे बारणे नीकली जाय ले तेम..
टीकाः-- ॥ यदुक्तं ॥ अंधं प्रति यथा लास्यं गानं च बधिरं प्रति ॥ अनथिनं प्रति व्यर्थं तथा सद्धर्मदेशनम् ॥ १५ ॥
अर्थः-जे माटे शास्त्रमा कयु जे जे आंधला प्रत्ये सुंदर नृत्य करवू तथा बेहेरा प्रत्ये सुंदर गान करवू जेम व्यर्थ , तेम जे पुरुषने साचा मार्गनी अभिलाषा नथी ते प्रत्ये साचा मार्गनो उपदेश करवो व्यर्थ ॥
टीका:-तथा विवेकवानिति ॥ पारिणामिक्या बुद्ध्या युक्तायुक्तविमर्शो विवेकस्तछान् ॥ विवेकी हि हेयपरित्यागेनोपादेयमुपादत्ते ॥
अर्थः-वली ते श्रोता पुरूष केवो होय तो के विवेकवालो एटले जे करवाथी पश्चाताप न थाय, एवं करावनारी जे बुद्धि तेने पारिणामिकी बुद्धि कहीए तेवी बुद्धिये करी युक्त, तथा युक्त अयुक्तनो जे विचार करवो तेने विवेक कहीए तेवा विवेक सहित जे होय ते विवेकी कहीए ॥
टीका:-तदुक्तं-हेयं विहाय विरलाः सद्सद्विवेकादादेय मत्र समुपाददते पुमांसः॥ संप्रत्यहो जगति हंत पिबंति नीरात्, दीर विविच्य सहसा विहगाः कियंतः ॥ १३ ॥
अर्थः-ते कयु , जे पुरूष सत् असत्ना विवेकयी त्याग करवा योग्यनो त्याग करे ने, ने ग्रहण करवा योग्यतुं ग्रहण करे बे,