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________________ -18 अथ श्री संघपट्टकः ( ४१ ) अर्थ:-त्यार पढी सुशोभित बे स्तन ने कटी थी नीचब्यो जाग ते जेमनो एवी; अने तिलक सहित बे ललाट जेमनां एवी तथा काननां श्राजुषणव में रची बे सुंदर शोना जेमनी एवी ने सुंदर बे त्रीवलीरुपी लता जेमनी एवी ने वनदेवी सरखी जाती जे पद्मावतीप्रमुख देवखोने संघा लइने धरणेंद्र नक्तिएकरीने पार्श्वनाथ स्वामी पासे श्रावता हवा. वनदेवी प्रत्ये विशेषणनो अर्थ जे सारा पत्र जेने बे एवा लकुच नामे वृनो वे श्राश्रय जेमने एहव ने पोताम वधारे सुगंध ठे माटे तिलकना वृथी प्राप्त या बे चमर जेमने एहवी ने कर्णिकारनां वृकवके य े बाया जेमने एवी ने सुंदर बे लवली नामे लताओ जेनी पासे एहवी. || 09 || GG || टीका:- विजुरीांबभूवेथ तेन मध्येजलोच्चयम् ॥ उर्मि - संवर्मितः शौरिरंतनराधिपं यथा ॥ ८‍ ॥ अर्थ:-त्यार पढी ते धरणेंद्रे जलना समूह मध्ये तरंग व व्यातथला जगवान दीवा. जेम समुद्रनी मध्ये नारायणने देखे तेम. ए दृष्टांत अन्य शास्त्र अनुसारी बे ते कबुंबे. समुनी मध्ये शेषनागना शरीर उपर नारायण सूत्रे बे ने ते नाग पोतानी हजार फणारुपी ar तेमना उपर धरे बे ने पासे लक्ष्मीजी पग चांपे बे, तेथी तेमनुं नाम शेषशायी भगवान कहेवाय बे इत्यादि कथा बे ॥ ८५ ॥ टीका :- मणिदीधितिनिद्भूतघनसंतमसं ततः ॥ अपारस्फारदुर्वारांबुधाराचौरगौरवम् ॥ ० ॥ श्रातपत्रं श्रियः संत्र फुल्लन्नबफणामयम् ॥ जुवनाधिपतेरूर्ध्वं प्राग् बिजरांबभू व सः ॥ १ ॥
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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