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________________ ( ४० ) - अथ श्री संघपट्टकः 8 कमल केतुं बे तो काला केशरूपी जमरा जेमां रह्या बे एवं ने सुंदर नेत्ररुपी निर्मळ पत्र जेमां रह्यां वे एवं, ने दांतनी कांति रूप मकरंदने करतुं ( उत्पन्न करतु) ने कंवरूप नाले करीने जयातुं एवं भगवंतनुं मुख, कमल सदृश जणाय बे ॥ ८४ ॥ टीका:- अनी योमणी रश्मि कि म्मि रितककुन्मुखम् ॥ इतश्च नागराजस्य सिंहासनम कंपत ॥ ८५ ॥ अर्थ:-एटलुं यया पती मोटा मणीनी कांतियोवत् चित्र विचित्र कय के दिशाश्रनां मुख जेणे एवं नागराजनुं सिंहासन कांपतु हवुं ॥ ८५ ॥ टीकाः - वृत्तांतस्तेन कृत्तांतःकरणस्थैनसा ततः ॥ प्रयुक्तावधिनाऽबोधि प्रोः पादप्रसादवत् ॥ ८६ ॥ अर्थ:-त्यार पछी जेदन थयुं वे अंतःकरणमा रहेलं पाप जेनुं एवा ते नागराजे अवधिज्ञान प्रयोजीने प्रभु संबंधी सर्वे वृतांत प्रजुना पादप्रसादनी पेठे जाएयुं. एटले जेम तीर्थंकरनो जन्मोत्सव जाणे वे तेम. अथवा पोता उपर जे पूर्वे प्रजुना चरणनो अनुग्रह थयो म अथवा कमठ योगीना पंचाग्नि कुंरुमां पूर्वे बलतो हतो तेथी जगवाने पोताना चरणप्रसादवने या प्रकारनी पदवी पमामी बे, ए पादप्रसादसहित जेम होय तेम जाणतो दवो ॥ ८६ ॥ क टीका - सत्पलकुचारोहा स्तिलकानुगता लिकाः ॥ सिंकारचितच्छाया सामंजुलवलीलताः ॥ 09 ॥ बन्यासमाः समादाय देवी: पद्मावती मुखाः ॥ धरणेंद्रस्ततो जक्त्या स्वा-नं समुपेयिवान् ॥ ७७ ॥ युग्मम्
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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