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अब श्री संघपट्टक
रह्यो एटले ए बे धोलासथी तथा उज्वलपणाथी सरखां जणाय डे ए हेतु माटे तथा परस्परनी निवृत्ति करे ए प्रकारनो को जाति श्रादिकनो नेद धर्म पण जणातो नथ एटले विजाति धर्मवमे वस्तु जुदी जणाय ने ते तो रुपाने विष तथा बीपने विषे धोलाश थादिक सदृश देखाय ने तेथी ब्रांति पामेला पुरुषने बीप देखीने था तो रुपुंडे ए प्रकारनी बुद्धिवमे ब्रांतिए करीने प्रवृत्तिले तेम जे लिंगधारीयोथे पोतानी मतिए कल्पेला मारगने विषे मूढ पुरुषोने था तो जैन मारग डे एवी ब्रांति थाय .
टीकाः---तथेहापि सन्मार्गा सन्मार्गगतजिनदेवतान्युप गमबाह्यावेषादिसमानधर्माऽवगमादन्योन्यव्यववेदक विध्यविधि प्रवृत्यादिविशेषधर्मानवगमाच्च वितथत्वादिना वस्तुतोऽनई. न्मतेपि प्रकृतमार्गेऽहन्मतमेतदितिबुद्ध्या मूढाःप्रवर्तत इति॥ न केवलमेतत्कुमार्ग वदंति।मूढास्तु तं गृहंत्यपीति च शब्दार्थः॥ हो ति विषादे
अर्थः---वळी सन्मार्गने विषे' तथा असन्मार्गने विषे जिन देवतानो अंगिकार रह्यो ने ते बेने विषे बाह्यथी वेषादि समान धर्म रह्यो । तेनुं ते ब्रांति पामेला पुरुषोने ज्ञान नथी, माटे एम कहे
जे श्राज जैन मार्ग बे ने वळी विधि मार्गने विषेतथा अविधि मा. गने विषे प्रवृत्ति श्रादिक जे परस्पर नेद जणावनारो विशेष धर्म तेनुं ते त्रांति पामेला पुरुषोने ज्ञान नथी माटे एम कहे जे जे आज जैन मार्ग वस्तुताए तो एमां असत्यपणुं श्रादिक दोष रह्या २ माटे ए अरिहंतनो मार्गज नथी पण हाल लोकनी प्रवृत्ति मार्गने विषे