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पर भी सं
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पर्थम जे नित्य निवासपानी असन बाय १ हेतु मोटे ने साधुने श्रावकादिकनों प्रतिबंध थाय तेथी लघुता आदिकनी प्रोति वाय ते वात शास्त्रमां कही वे जे जो साधु विहार में करे तो ते पक्षमा आटला दोष रह्या वे जे प्रतिबंध थाय तथा लघुता थाय तथा लोकोनो उपकार न थाय. तथा नाना प्रकारना देशनुं विज्ञान न थाय तथा आज्ञानुं आरधिन न थाये.
टीका:- उद्यत विहारस्यैव ममकारायुच्छेद निमित्तत्वेनानिधानात् ॥ यदाह ॥ श्रनिययवासी समुयाणच रिया श्रन्नीय ठंडे पयरिकयाय ॥ अप्पोवंदी कलह विवाणा य विहारच रिया इसिसत्या ॥
अर्थः- जे बिहारना उद्यमी है तेनैज ममत्वनो नाश याय हे ते शास्त्रमां कथं बे जे मुनिने विहार चर्या करवी ते प्रशस्त है पटले वखाणवा योग्य डे कैम जे एक जगाए नियमाए निवास यह न जाय तथा घणा घरनी गौचरी थाय तथा अज्ञात गोचरी थाप एटले
पनार तथा लेनार परस्पर नळखे नहि तथा शुद्ध अहार मळे तथा प्रतिरिक्तपणुं थाय. एटले स्त्री पशु नपुंसके रहित एवं स्थान मले तथा अप उपधि थाय तथा कलहनो त्याग याय ए सबै गुण मुनिने विहार करता प्राप्त ययि है.
टीकाः
सातपटतयाँ मै नियतस्थितयो भासंतीति कथं न जवंति विटाः ॥ तथा शुचयो निर्मजाः पर