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________________ 40 अथ श्री संघपट्टक 8- ( ४१३ ) तेनी सिद्धिने छायें बे केम जे ते विना यतिने चैत्यवास संबंधी स्वतंत्र कर्तापन थाय तथा ते चैत्यनी जे चिंता पटले साल संजाल सुखवी तेनुं करवापणुं इत्यादिक सिद्धन थइ शके माटे एम जो तमे कहता होतो ते न कहेतुं केम जे विकल्प सहन नहीं थाय एवा ए • प्रकारनं सुविहितनुं वचन बे. टीका:- तथादितदभ्युपगममात्रंप्रमाणमूल मप्रमाणमूलं वास्यात् ॥ प्रमाणमूलं चेन्मवादावेवेत्यवधारणव्याघातः ॥ तदज्युपगममात्रस्य प्रमाणमूलत्वे चैत्यवासस्यापितन्मूलत्वेन प्रमाण सिद्धेः ॥ छार्थः- तेज कही देखाने बे जे ते मठवासनुं जे श्रावन ते प्रमाण मूल बे के श्रप्रमाण मूल बे ने जो प्रमाण मूल बे तो 'मादौ एव' ए जगाए एवकार शब्दनो निरधारणवाचक जे कार्थ बे तेनो व्यामात बसे एटले नहि घटे ने ते मव्वासना अंगिकार करवानुं प्र मालपणुं जो होय तो चैत्यवासनुं पण तेना मूलपणे करोने प्रमा सिद्ध थाय पण तेतो नथी. टीकाः - श्रप्रमाणमूलं चेत्यज्यतां तर्हि चैत्यवासानिनिवेशः ॥ समूलमुन्मूल्यतां तत्समर्थनाय विरचितानि वादस्थलानि ॥ समुत्सृज्यतामप्रमाणिक चैत्यवासाच्युपगममूलत्वेना प्रामायान्महासावद्यशय्यारूपमठवासाच्युपगमः ॥ अच्युपेयतां चाकर्मादिसकल दोषरहितपरगृवासेन सौविदित्यमिति ॥ अर्थः- ने जो चैत्यवास श्रममागमूस डे तो चैत्यवासनो
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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