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________________ - अब श्री संघपट्टक न जिननवन मिति चेन ॥ नाणस्सदसणस्सय इत्यादौ यत्रेति जिनगृहादावि त्यायतन इति वृत्तिकृद्व्याख्यानेनैकप्रकमात् ॥ जत्थसाहिम्मिया इत्यत्रापि तदर्थानुवृत्तेर्यत्रे त्यायतन इति व्याख्यानस्य न्याय प्राप्तत्वान्न यत्रेति मगदा वित्यर्थः॥ - अर्थः-लिंगधारी आशंका करे जे जे ए प्रकारे जिन गृ. हनी अनायतनपणानी सिकि थाय डे पण जो 'जत्थ साहिम्मिया' इत्यादिक गाथाने विष यत्र ए शब्दनो जिन गृहादिक ए प्रकारनो ए अर्थ होय. अपितु न होय त्यारे शो अर्थ होय तो यत्र शब्दनो मठादिक ए प्रकारनो अर्थ थशे त्यारे ए जिननवन तेमना निवासे सहित थशे तोपण अनायतन नहि थाय त्यारे सुविहित बोल्या जे एम तमे कहेता होतो ते न कहेवु केम जे 'नाणस्सदंसस्सय' इत्यादि स्थळने विषे यत्र कहेता जे आयतनने विषे एम वृति करनारे यत्र शब्दनी व्याख्या करी तेनी संघाये ए यत्र शब्दनो पण एक प्रक्रम ने ए हेतु माटे 'जत्थसाहम्मिया' ए जगाए पण तेज अर्थनी अनुवृत्ति श्रावशे ए हेतु माटे यत्र कहेता जे आयतनने विषे ए प्रकारनी व्याख्या करवी एज न्याय प्राप्त अर्थ थयो ने माटे यत्र शब्दनो मठादिरुप अर्थ नहि थाय. ... टीकाः-जवतुवायत्रेतिमगदौ तथापि किंमठादावेववसंति अहोमठादावपीति विकल्पयुगलं जवन्मनोरथपथमयनपटिष्टमु. .. तिष्टते ॥ तत्र यद्यायः पद स्तदानवतोवाङमनस विसंवादेन चैत्यवासान्युपगमनंगप्रसंगः इतरथा मगदावेवेत्यवधारणा. नुपपत्तेः ॥
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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