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________________ - अय श्री संघपट्टकः योग्यनो त्याग करवो इत्यादि सर्वोत्तम यति धर्म ले तथा बीजो श्रावक धर्म ने तथा त्रीजो संविग्न पाक्षिक बे. टीका:-इत्यनेनोत्तममध्यमजघन्यन्नेदेन मुक्तिपथप्रयं प्रदर्य संसारपथत्रयं दिदर्शयिषता ग्रंथकारेण प्रतिपादितं से सामिबदिछीगिहि लिंगकुलिंग दवलिंगेहिं जहतित्रीमुकपहा. संसारपहा तहा तिनि॥ अर्थः--ए वचने करिने नुत्तम मध्यम ने जघन्य एत्रण भेदे करीने त्रण प्रकारनो मोद मार्ग देखामीने संसार मार्च पण त्रण प्रकारनो डे एम देखामवानी बाये ग्रंथकारे या प्रकारे प्रति. पादन कर्यु २ जे बाकी रह्या ते गृहस्थ लिंगे करीने तथा कुलिंगे करीने तथा अव्यलिंगे करीने मिथ्यादृष्टि जाणवा. जेम ऋण प्रकारे मोक्ष मार्ग तेम ए त्रय प्रकारनो संसार मार्ग के. टीकाः-अत्रसु साध्वादिव्यतिरिक्ता मिथ्यादृष्टयोरहि . विंगिजव्यलिंगिनो दर्शिताः ॥ तत्र गृहिलि गिनां हलधरगोपालादीनां सामाचार उत्तमः संसारपथः॥ तन्मिथ्यात्वस्यानानि ग्रहिकत्वेन संक्लेशानावेनचोत्तमत्वात् ॥ कुतीर्थिनां तनकानांच मध्यमः ॥ तन्मिथ्यात्वस्यानिग्रहिकत्वेन प्रथमापेक्षया निविमत्वात् ॥ अव्यालि गिनां पार्श्वस्थादीनांतु जघन्यस्तन्मिथ्यात्वस्यानिनिवेशिकत्वेन गोष्टामाहिलादिवदितिबकमूल. त्यात ॥ एवंच ग्रंथार्थपूर्वापरपालोचनेन कथं म तेषां महामि
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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