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________________ १३१६) अय श्री संघपट्टक:* ने बुद्धि जेनी एवा गृहस्थोने दूर को ले कुगतिनिवास ते जेणे एवो एवो नावनो नहास थाय . ने तेज प्रकारना नाव 'उल्हासने सुगति, कारणपणुं ने तेथ। ते नाव नवासने नगवते बटु मान्यो २ ए हेतु माटे. टीकाः यदाह ॥ जोचेव जावलेसो, सोचैवय नगवर्ड बहुमति॥ अर्थः-जे कारण माटे शास्त्रमा कयुं । जे जेची लावशु. द्धि खेश मात्र पण थाय तेज जगवते बहु करीने मान्युं में एटले श्रेष्ठ कह्यु बे. . टीकाः-इति चेत् तन्न ॥ मार्गानुसारिण्याः कदाग्रहरहितायाः प्रज्ञापनायोग्यायाएव नावशु रिहाधिकारात् ।। ॥ यमुक्तं ॥ जावशुधिरपि शेया, यैषा मागानुसारिणी ॥ प्रज्ञापनाप्रियात्यर्थ नपुनः स्वाग्रहात्मिका ॥ औचित्येन प्रवृत्तस्य कुग्रहत्यागतो भृशं ॥: ____ सर्वत्रागमनिष्टस्य नावशुहिर्यथोदिता ।। . अर्थः-सुविहित उत्तर श्रापे एम जो तुं कहे तो होप से ते न कहे केम जे मार्गानुसारिणी ने कदाग्रह रहित ने प्रज्ञापनो
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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