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________________ (२७). 48 बय श्री संघपट्टा AAAAmwww ANNA हासन त्यां लइ जाय . त्यारे तेना चित्तनी अनुवृत्ति राखवे करीने प्रत्तावनादि लाननी संजावना करता सता ते श्रासन उपर बेसीने पण व्याख्यान करे . टीकाः-श्रन्यथातु तेषांजगवत्समीपवर्तिनामुत्सर्गेणतत्पाद पागध्यासनेन कदाचित्ततः पृग्विहरतांचौपग्रहिकपट्टाघुपवे शनेन स्वनिषद्योपवेशनेन वा व्याख्याविधिःप्रतिपादितः ॥ एव - मधुनापिगीतार्थसूरिनिरुत्सर्गेणौपग्रहिक पट्टस्वनिषद्याधुपवेश नेन व्याख्यानं विधेयं ॥ अर्थः-एम जो न होय तो जगवतनी समीप रहेनार एवा ते गणधरने नत्सर्गे मार्गे ते लगवंतना पादपीठ नपर बेसवान ए हेतु माटे ने कयारेक ते जगवंतथी जुदा विहार करे त्यारे तो चौद नपकरणथी बाहार जे उपकरण ते औपग्रहिक कहीए ते उपग्रहीक एवां पाटप्रमुख श्रासन ते उपर बेस, तेणे करीने अथवा पो ताना श्रासन नपर बेसबुं तेणे करीने व्याख्यान विधि प्रतिपादन कों ने. एमआ कालमां पण गोतार्थसूरीये नत्सर्ग मार्गे नपग्रहीक पट्ट अथवा पोतार्नु श्रासन ते उपर बेसीने व्याख्यान करवू. टीकाः-अपवादतस्तु कदाचिमाजकुलादिगमने तत्प्रार्थः । नया सिंहासनायुपवेशनेनापि॥ नविदानींतनरुढयाय थाकथंचिसिंहासनादावुपवेष्टव्यमिति ॥ एतेन यदपि वैरस्वाम्युदाहरणेन यतीनां महाईसिंहासनाध्यासनप्रतिपादनं तद
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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