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4. अथ श्री संघपट्टक
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.. अर्थः-तेमां जो प्रथम पक्षनो अंगिकार करो त्यारे तो गणधरना न्यायने अनुसारे तमारे पण राजाए आपेला सिंहासनने विषेज बेशीने व्याख्यान करवानो प्रसंग आवशे. ने वळी बीजो पक्ष, जे राजाए आपेतुं ने बीजाए पण आपेलु एवा पक्षनो अंगिकार करशो तो तेमां पण बे विकल्प ले जे शुं राजा विना बीजा लोके आपेलुं के अहो पोताने अर्थे करावीने एटले यतिने अर्थे करावीने बीजा लोके श्राप्यु राजाए पोते आपेलु.
टीकाः न तावदाद्यः ॥ राजव्यतिरिक्तलोकानां सिंहासना जावेनतपनीतत्वानुपपत्तेः ॥ नृपासनं विनाऽन्यस्यानिधान कोशादिषुसिंहासनव्यपदेशासिझैः ॥ नृपासनंयत्ततजासनसिंहासनंचतदितिवचनात् ॥अन्यत्रतु तव्यपदेशस्य नाक्तत्वात्।। ननुलवत्वग्निर्माणवकश्त्यादौ सर्वथातदाकारधारणतदर्थक्रिया कारित्वादिविरहेण कतिचित्तद्गुणयोगादग्निशब्दस्य माणव
केन्नाक्तत्व मिहतुमात्रयापितहिरहालावेन सकल तजुणोपपत्तेः - कथंनाक्तत्वं ॥
अर्थः-तेमां प्रथमनो विकल्प जे राजा विना बीजा लोके श्रापेलु तो राजा विना बीजा लोकोने सिंहासन होय नहीं माटे तेणे आपेलुं एवात केम सिह थाय ने राजासन विना बीजानुं सिंहासन एवं नाम अजिधान कोशादिकने विषे सिक कर्यु नथी.॥ केमजे ते कोश- वचन आ प्रकार ने जे राजानुं आसन ते जजासन कहीए तथा सिंहासन कहीए ए हेतु माटे ने बीजी जगाए ते सिंहासन, नाम कहेवाय जे ते तो लाक्षणिक के एटले मुख्य