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________________ - अथ श्री संघपट्टकः .. शांतनी युक्तिए करी खंमन कर्यु तो पण लंपटपणाथी तथा श्रनिनिवेशक मिथ्यात्व (कदाग्रह) ना उदयथी पोताना हग्वादने नहीं मूकनारा अने पोतानी इच्छा प्रमाणे वर्तनारा एवा ते लिंगधारी थये बते. टीकाः-तत स्तमुत्सूत्रदेशनाविरलगरललहरी चरीकृष्यमाणहृदयनूमिनिहितचेतनाबीज मुदग्रदुर्निग्रहकुग्रहावग्रहशोशुष्यमाणविवेकांकुरं निरर्गल मुखकुहरनिःसरदुर्वाणी कृपाणीकृत्तधार्मिकमर्माणं श्रासंघ निरीक्ष्य ॥ अर्थः-त्यार पठी ते लिंगधारीनी उत्सूत्र देशनारूपी मोटा हलाहल फेरनी लेहेरोए करीने; “जेनुं हृदयरूपी पृथ्वीमा रहेढुं ज्ञानरूपी बीज, अतिशे खेंचाइ गयुं जे एवो तथा जेना विवेकरूपी अंकुरा आकरा अने माग कदाग्रहरूपी दुकाळ पमवाथी अतिशे सुकाया ने एवो, तथा जेने बोले बंध नथी एवां मुखरूपी रिमांथी नीकळती माठीवाणीरूप तरवारे करीने धार्मिक लोकोनां मर्मस्थळ जेणे द्यां , एवो श्रावकनो समूह थयो ते देखीने टीकाः-तदुपचिकीर्षयाहृद्यानवद्यसमग्रविद्या नितंबिनीचुंबितवदनताम रसः सांसंवेगशास्त्रार्थरसायनपानवांतकामरसः॥ ... अर्थः-तेमनो उपकार करवानी श्छाये, सुंदर अने निर्दोष एवी समस्त विद्यारूपी स्त्रीयोये जेना मुख कमलने चुंबन कर्यु में, अर्थात् जेना मुखकलमां सर्व विद्यायो पोतानी मेळे श्रावीने रहेखी ने एवा, अने घणां वैराग्यवंत शास्त्रनोनावार्थ जाणवा रूप रसायन औषधनुं पान करीने कामरस वमन कर्यो ने एवा.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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