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अब श्री संघपट्टक
LAW
मां प्रसिक रूश्रादि वस्तुए नरेखं जे श्रासन विशेष ते गादी कहीए. श्रादि शब्दथी मशरूनी तलाश सिंहासन इत्यादिकनुं ग्रहण करवू. एणे करीने जे पूर्वे 'नाणाहित' इत्यादि आगम वचनबळ लइने प्रवचन- प्रनावक अंगपणे यतिने गादी सिंहासन आ. दिक शासन नपर बेसवार्नु प्रतिपक्षीए प्रतिपादन कर्यु हतुं ते सर्वे पण सुखशीलीयापणानो विलास .
टीकाः-तथाहि॥ किं यतेमहार्हगब्दिकाद्यासनोपवेशनमेव प्रवचनप्रसिद्धसम्यग्ज्ञानादित्रयानिव्यंजनं ? न ताववदायः॥ श्दांनीतनरूढया निर्गुणस्य कस्यचिदनागमज्ञस्याचार्यादेःसदसि व्याचिख्यासया महार्हासनोपवेशनेपि प्रवचनप्रजावनाया अनुपपत्तेः प्रत्युत तादृशस्तस्य तथाभूतासनमध्यासीनस्य केनापि तर्ककर्कशवाग्जबिशख्यितारातिको विदेन प्रतिवादिना क्षिप्तस्य स हृदय हृदयंगम प्रतिवचनानावेन महाप्रवचन लाघवापादनात् ॥
अर्थः-तेज प्रतिपादन करे ले जे यतिने मोटा मोटा मूलनी गादी श्रादिक श्रासन उपर बेस, एज प्रवचननी प्रनावनानुं अंग ने के प्रवचनमा प्रसिद्ध एवं सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्र ए त्रणनो प्रकाश करवो ए प्रवचननी प्रनावनानुं अंग डे तेनो उत्तर बोर्बु तेमां प्रथमनो पक्ष ते तो अंगिकार करवा योग्य नथी. केम जे श्रा काळनी रुढीए कोइक श्राचार्य श्रादिक ते आगमनो अजाण ने गुणरहित ले तेने सजामां व्याख्यान कराववानी लाए मोटा मोटा मूखना आसन पर बेसारीए तो पण प्रवचननी प्रज्ञावना तेथी थर शकती