SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२५२) 19. अय श्री संघपट्टकः - पूजारी रह्या डे ने जूनुं ने बहुधा पमेयूँ एवं एक जिनमंदिर जे गाममा २ ए प्रकारना गाममां आव्या सता तेमां ते सुविहित साधु अपवाद मार्गे देवपूजारीनी शिक्षादिकने अर्थे देवकुळमां गया ने विचार करे ले जे था चैत्यनुं समारवू थये सते या गामना नजिक लोक ते जैन मार्गनो अंगिकार करशे, एवं संलव डे केम जे सुविहित पुरुष, जे आगमन ने ते जैन मार्गनो अंगिकार करवारुप गुण नणी माटे देवकुलीक प्रत्ये ते सुविहित बोले जे जे ‘सीले. हमंख' इत्यादि गाथाए करीने कहे डे. टीकाः-नोदेवकुलिका एतानिमंखफलकानीव मंखफल कानि यथा मंखस्य फलकोज्वलतया ग्रासनिर्वाह एवं नवता. मपि चैत्य निर्मलतया तत्सदनसजातयाच निर्वाहः॥ अतो निर्वाहहेतुचैत्यानि शीलयत समारचयत ॥ इतरे सुविहिताः चोयंति प्रेरयंति तंतुमाश्सु लूतातत्वप्रसारणादिषु ॥ अथ ते लिंगिनः सवृत्तयः चैत्यचिंता विनापि प्रासंचितप्रविणनिचयेत विद्यमान निर्वाहा स्तदा तान् अनियोजयंति ॥ अंबामिति निष्टुरवाचा शिक्षयंति ॥ यथानोऽझाकिमित्येतानि चैत्यानि न समारचयथ यतएता निविना पश्चादपि न नविता न'वतां निर्वाहः॥ . अर्थः-जे नो देवकुलिक श्राजे चैत्य ले तेतो मंखफलक जेवां के एटले मंख ते कोश्क जाति विशेष पुरुष, ते पोतानी आ जिविकाना कारणरुप जे चित्रफलक तेनी उज्वलता राखे तो ते थकी तेनो जेम निर्वाह थाय ने तेम तमारे पण चेत्यनी निर्मळता
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy