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________________ - अथ श्री संघपट्टकः -- नक्तपाना दिनक्त्य निधानात् ॥ यदुक्तं ॥ तगघयगुलगोरसफा सुप मिला हांस मणसंधे ॥ सगण वाइगाणंति ॥ तथा.... सङ्केणं सइविहवे साहूणं वत्थमाइ दायव्वं गुणवंता विसेसो त्ति ॥ ( २३७) अर्थः जे माटे या जगाए तो गणधरना शिष्यादिकने पोत पोताना गुरुए देखामी जे स्थिति आदिक तेनुं उल्लंधन थये सते अनंत संसारीपणुं याय एम कधुं बे माटे जे जे गणधरना शिष्य होय तेने तेने पोतपोताना गणधरनी मर्यादा ग्रहण करवी एवा अभिप्राय ए शास्त्र वचन बे एम निश्चय करीए बीए. ने श्रावने तो सर्वथा धार्मिक गच्छने विषे विशेष रहित जक्त पान था दिक भक्ति करवानुं कहेवापणुं वे ए हेतु माटे, ते शास्त्रमां कहुंबे जे. टीका:- तो नेदानींतन रुढ्या प्रतिनियतगष्ठपरिग्रह वि पयत्वं तेषां सिध्यति ॥ यच्वशक्तस्य ॥ तदसइसस्स गछस्स ॥ तथा दिसाइत विन जे सत्य इत्युक्तगाथयोश्चतुर्थपादान्यां धर्मगुरुषु तछेवा विशेषण दाननक्तिप्रतिपादनं तत्तेषां दुःप्रतिकारतया नतु तत्स्वीकार विषयतयेति ॥ अर्थ:-- हेतु माटे या काळनी रुढि प्रमाणे पोते पोतानां गठ बांधीने ते गहना अजिमानवाळा श्रावकने पोताचा करी रा खवा एम शास्त्र के सिद्ध थतुं नथी ने वळी अशक्त तमे कयुं जे तदस सबस्स ' ए गाथा तथा 'दिसाइछतवि' ए गाथा, ते बेगाथाना चोथा पादथी धर्मगुरुने विषे तथा तेना गहना विषे विशेष 6
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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