SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७ अथ श्री संघपट्टकः ( २०९ ) ऐय ॥ जहि श्रप्ययरा दोसा ॥ श्रानराई दूरश्रय सिया चिलमिलि निसिजागरणं गीए सज्जायजाणाइ ॥ श्रद्धा निग्गयाई तिखुत्तो मग्गिऊ असईए ॥ ग्गीयत्था जयणाए वसंति तो दवसा गरिए ॥ श्रद्धा निग्गयाई वासे सावयतिए व तेणजए, आवलिया तिविहेवी, वसंति जयणाए गीयत्था | अर्थ:-गळ पावळ यावी गयो बे. टीका:- इयं यतना स्त्रीसंसक्तवस तिमधिकृत्योक्ता ॥ पशु पंग संसक्तायामपि वसतौ वसतामेतदनुसारेण संजविनीयय-: तना दृष्टव्या । तदयमर्थः ॥ स्त्री संक्त्या दिसंनवेप्येवं विधयतनासावधानानां मुनीनां न तज्जन्या दोषाः प्राडुष्यंति स र्वत्र सर्वस्मिन्नपि वत्यधिकारप्रवृत्तोदेशका | अर्थ:- प्रकारनी यतना स्त्रीना संबंध सहित ज्यारे निवास होय तेनो अधिकार करीने कही बे माटे पशु तथा नपुंसकना संबंधवाळा निवासमां पण रहेनारने या यतनाने अनुसारे जेम संवे ते यतना करवी तेनो अर्थ प्रगट ने जे स्त्रीनो संभव आदिक थवानो संभव होय त्यां पण ए प्रकारनी यतना करवामां सावधान रहेता मुनियोने ते स्त्रीयादिकना संबंधथी थरला दोष नहीं प्रगट याय एम सर्व जगाए एटले साधुना निवासना अधिकारमां प्रवर्त्तेला सर्व नदेशक यादिकने विषे एम जाणवुं यतनावालाने स्त्रीया दिकना संबंधथी यएला दोष नही प्रगट याय २५
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy