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________________ Awww. - अब श्री संघपट्टकः (२००) रनुं वचन डे माटे मुनिने रहेवानो विषय एक स्थानकनो. एटलो अर्थ ले. ते मुनिने रहेवा विषे एक स्थानक तेने देखाके ले ले गृहस्थना घरमां रहेढुं बीजे न रहे. टीकाः कीदृशे स्त्रीणां योषितां संसक्तिः संसोरूपायापातप्रत्यासत्तिः ॥ श्रादिग्रहणात् पशुपंमका दिग्रहः तद्युक्तेऽपि तत्सहितेपि ॥ श्रास्तां तरहित इत्यपिशब्दार्थः । नजा वयस्स अगुत्ति इत्यादि वचनात् स्त्रीसंक्तिमति पशुपंमगे सविहं मोहानलदीवियाण जं हो ॥ पायमसुहा पवित्ती पुवन्नवप्नासर्ड तहयेत्या दिवचनात्यशुपंमकसंसक्तिमति च परसदने वसतां .. संयतानां मन्मथोत्कलिकाद्यनेकदोषसंजवात् कथं तत्र वासो :नियमित स्तत्राह ॥ अर्थः-ते गृहस्थy घर केवु ने, तो स्त्रीश्रीना संबंध सहित के. एटले स्त्रीश्रोनां रुपधादिकनुं इत्यादि जेमां स्त्री संबंध रह्यो ... श्रा जगोए आदि शब्दनुं ग्रहण कर्यु डे माटे गृहस्थ- घर पशु तथा नपुंसक इत्यादिके करी सहित होय तोपण तेमां मुनिने निवास करवो, तो जेमां स्त्री आदिकनो संबंध न होय ने तेमां निवास करखो तेनी तो शी वात करवी. ए प्रकारे अपि शब्दनो अर्थ बे ए प्रकारनां वचन सांजळीने लिंगधारी आशंका करे ले जे ब्रह्म ब. तनी अगुप्ति इत्यादि वचनथी स्त्रीनो जेमां संबंध ने जेमां पशु अ. थवा नपुंसक रह्या जे. तेथी जेमां मोहरुपी अग्नि प्रदिप्त थाय इत्यादि बचनथी पशु तथा नपुंशक तेनो संबंध जेमांडे, एवा परघरमा रेहेनारा साधुने कामनुं उद्दीपन थाय इत्यादि दोषनो संजय
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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