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________________ (२०४) 49. अथ श्री संघपट्टकःसहित होय ने शुं एम डे केम जे अपवाद मार्ग धारण करे , ए प्रकारना वचनथी नत्सर्ग तथा अपवाद ए बे पदनो छ समास करवो त्यार पली नाना प्रकारना निवासस्थान श्रादिकने विषे जपाता ने उत्सर्ग अपवाद कहेतां सामान्य विशेष विधि जेने विषे एबुं सूत्र . टीकाः-शिवपुर्य्या निःश्रेयसनगऱ्या दूतनूतःसंदेशहरसहशस्तत्र जूतशब्दस्यात्रसदृशवाचित्वात् ॥ तेनायमर्थः ॥ यथा कश्चित्परराजदौवारिकादिः कस्यांचित्पुरिप्रविविकुस्तत्पृथ्वीपतिसंदिष्टदतनणितेन प्रवेशं प्राप्नोति तथा यतिरपि निःश्रेयसपुरे निशीथप्रतिपादितविधिनेतिप्राक् प्रथमं नक्त्वा प्रतिपाद्य नरिनेदाः प्रजूतप्रकारा गृहिगृहवसतीगुहस्थसदनरूपोपाश्रयान् पश्चाचरमकारणे तथाविधवसत्यलान्नलक्षणे हैतो श्रपोद्य अपवाद विषयीकृत्य ताएवेति गम्यते ॥ अर्थ:-वळी निशीथ सूत्र मोहनगरीना दूत जेवू ले. भूत शब्द था जगाए सदृश वाची ले तेणे करीने श्रा अर्थ थयो. जेम कोइक परराजानो झारपाळ होय, तेम कोश्क नगरीमा प्रवेश करवा श्वतो पुरूष ते पृथ्वीपति राजाए श्राज्ञा आपेला दूतना कहेवाथी ते नगरीमा प्रवेश पामे ले तेम यति पण मोक्षपुरीमा, निशीथ सूत्रमा प्रतिपादन करेला विधिये करीने प्रवेश करे ले माटे मोक्षः पुरीना दूत जेवू निशीथ सूत्र कयुं तेमां प्रथम घणा प्रकारनां गहस्थनां घररूपी उपाश्रय प्रतिपादन कर्या ने पली बेटा कारणमा
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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