________________
___ अथ श्री संघपट्टकः - (२०३) हो? जो सर्वया श्रागममां चैत्यवास अनिमत न कह्यो होत तो परघरवास जे तमे थाप्यो तेनी क्षमा करीए पण ज्यारे तो ते श्रागममां को जगाए चैत्यवास कह्यो होय, तोपण हव्वादथीज तमो परघरवासनो श्राश्रय करोडो त्यारे तो क्षमा करीए ए प्रकारनुंलिंगधारीनुं श्राशंकावाक्य धारि सुविहित चित्रात्सर्ग ए काव्ये करीने उत्तर श्रापे ,
टीका:-चित्रोत्सर्गेत्यादि ॥ यत् यस्मात् श्हेति सन्मुनीनां नित्यान्यास विषयत्वेन पुरोवर्तिनि अथवा इह प्रवचने निशीथे प्रकल्पाध्ययने पंचमोद्देशकादौ किंजूते ? सामान्य विधिरुत्सर्गः विशेष विधिरपवादः ॥ नज्जुयमग्गुसग्गो अववा तस्स चेवपमिबरको ॥ उस्सग्गाज पमंतं धरेश्सालंबण मवान ॥ इतिवचः नात् ॥ नत्सर्गश्चापवादश्चेति इंछः ततश्च चित्रौनानाविधौवसत्या दिगोचरावुत्सर्गापवादौ सामान्यविशेष विधीयत्र सतथा तत्र
अर्थः-जे चित्रोत्सर्गापवादे आ निशीथ सूत्रमा नाना प्र. कारनो उत्सर्गअने अपवाद संबंधि मार्ग था निशीथ सूत्रमा एम जे कह्यं तेनो अनिप्राय ए जे सारा मुनियोने तेनो नित्य अज्यास करवे करीने या प्रत्यक्ष जणातुं जे निशीथ सूत्र तेन विषे अथवा श्री प्रवचनमां निशीथ सूत्रने विषे प्रकल्प अध्ययनना पांचमा उ. देशाने विषे ए प्रकारे इह शब्दनो अर्थ करो तेमां सामान्य विधि ते उत्सर्ग कहीए ने विशेष विधि ते अपवाद कहीए, ते का ते जे उत्सर्ग मार्ग ते रुजु मार्ग कहीए ने ते नत्सर्गनो प्रतिपक अपवाद"मार्ग कहीए ने जे नत्सर्ग मार्गथी पके . तेने आलंबन