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________________ (२००) 8. अथ श्री संघपट्टकः - Inuriwww अर्थः-ए हेतु माटे निःस्पृहने परघरमां रहे, ए नि:संगतार्नु चिन्ह डे केमजे निःसंगता ढांकेली नथी नघामी डे ए हेतु माप्टे ने कोई पण माह्यो पुरुष पोताने श्राधिन विनव उते. परघर प्रत्यें निवास करीने उपजीका करे ? न करे था जगाए पद शब्द अजहत् लिंगे . माटे विशेष्पना जे स्त्री लीगपणुं न थयुं, नित्य नपुंसकपद शब्द रह्यो. टीकाः-किं कुर्वन् न विशेष्टीत्यताह ॥ जानन् आगम श्रवणेंनी वबुप्यमानः ॥ कांशय्यांतर श्त्युक्ति नाषा तां ॥ सि"कौतेहिं शय्यातरशत नाषा श्रूयते ॥ नचासौ साधूनां प: रगृहवास विनोपपद्यते ॥ तथाहि ॥शय्यावसत्यायतिच्योदाना तरत्ति संसारपारावार मिति शय्यातर शब्दार्थः॥. अर्थः-शुं करतो तो विद्वेष न करे एवी था शंकाथी कहे जे श्रागमना श्रवणे करीने शय्यातर ए प्रकारनी उक्ति एंटले भाषा तेने जाणतो तो सिमांतमा शय्यातर ए प्रकारनी नाषा संनळाय , ते साधुने परघरमां निवास विना घटती नथी माटे तेज कही देखामे जे शय्या जे वसति एटले निवास तेनुं साधुने आपवा थकी संसार समुज्ने तरे. तेने शय्यातर कहीए एम श. व्यातर शब्दनो अर्थ बे. टीकाः तदुक्त। शय्यावसतिराख्यातायतिन्योदानतस्तया। यस्तरति नवांशोधि शय्यातर मुशंति तं ॥ परगृहवसति किना
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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