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________________ अथ श्री संघाहक समां साधुने एवा निवासनो पाश्रय करवापणे कहेलो प्रतिपादन करेखो माटे शास्त्रमा कहेलो ने गृहस्थोए जोगवेलो ए वे पदनो कर्मधारय समास करवो. कये प्रकारे कहेलो ? तो साक्षात् प्रत्यक् पोते कस्रो एटलो अर्थ बे, कोणे कहेलो तो तीर्थंकर तथा गौतमस्वामी आदि गणधरोए कहेलो चकारनो समुच्चय अर्थ करवो. टीका:-तथाहि ॥ नगवान् श्रीमहावीरोवर्षाचतुर्मासके तिष्टासुईयमानपाखंझिनामाश्रमं गतस्तत्कुलपतिना जगवत् फ्लुिक्यस्येन सबहुमानमनुज्ञातस्तछुटजमध्युवासेत्यादि शूयते तथाचावश्यकचूर्णिः ॥ ताहे सामी वासावासे नवागएतं वेव दूरांतग गामं ए॥ तत्थे गंमि उमए वासावासंठियोति॥ सया ॥ ताहे सामीरायगिह तत्थवाहिरिगाए तंतुवायसालार . एगदिसिं श्रहापभिरूवंधवगहं श्रणुन्नवित्ता चिति॥ अर्थः-परघर वास तीर्थंकर महाराजे कर्यो ने ते कही दै. खामे . जे जगवान श्रीमहावीर रवामी वर्षाचोमासु रहेवा इच्छतासता, उख पामता पाखंमि तेमना आश्रममां गया त्यारे लगवानना पितानो मित्र कुलपति तेणे बहुमानपूर्वक अनुज्ञा करी त्यारे तेनी पर्ण शाळामां निवास कर्यों इत्यादि सांजळीए बीए वळी आवश्यक चूर्णिमां कडं ने जे. टीकाः तथा श्री सिंहगिरिसूरयोवैरमुनिक्सतिपालं संस्थाव्य बहिः संज्ञाभूमिं गता इतिचभ्रूयते॥ तथाहि ॥ अन्नयामा
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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