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________________ IM (१६६) -50 अथ श्री संघपट्टकः - टीका:-॥ यदाह ॥ कालोवि वितहकरणेगं तेणे वहोश्करगं तु ॥ नहि एयंमिविकाले विसाइ सुहयं श्रमंतजुझं ॥ अर्थः-खोटुं काम करवामां काल, आलंबन प्रमाण गणाय नहीं केम के श्रा कालमां पण मंत्रित कर्या वगर विषादिक खावाथ। प्राण जाय . टीका-किंच कयंगुरु लाघवचिंता किंस्तोक गुणपरित्यागेन प्रजूततम गुणोपार्जनं ॥ यदाह ॥ अप्पपरिचा एणं बहुतरगुः णसाहणं जहिंहोइसा गुरुलाघवचिंता जम्हानानववन्नत्ति ॥ अर्थः-वळी ते कही जे गुरु लाधव चिंता ते कइ . शुं थोमा गुणना त्यागे करीने अतिशे घणा गुणर्नु उपार्जन कर, एडे के बीजी जे. जे माटे शास्त्रमा कयुं जे जे अपनो परित्याग करीने अतिशे घणा गुणनुं ज्यां साधन डे ते गुरु साघव चिंता कहीए. टीकाः-तथाहि अस्यांचैत्यवासा चरणायां तीर्थानुहित्यादयो नूयांसो गुणाः ॥ दोषश्च देवचिंताकरणेन अव्यस्तवांगी कारोऽपति॥अहोस्विद् गुरोजगवतो लाघवं अवज्ञाचिंतयेति॥ अर्थः-तेज कहे जे जे आ चैत्यवासनी आचरणाने विषे तीर्थनो उबेद न थाय इत्यादिकघणा गुण ने दोषतो देवनी चिंत्या करवी तेणे करीने अन्य स्तवनो अंगीकार करवारुप अल्प डे इ.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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