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________________ (१४६) . - अथ श्री संघपट्टकःकासवो, वयणं अगुणापोतीए पत्थिवमुवासए॥खनु, वित्ति निमित्तं जयाचेव ॥ दुन्निधि मलस्स वि तणुरप्पेस अन्हाणिया ॥ उन्न वानवहो चेव, तेण तिनचेश्ए ॥अत्रहि देवनिमित्तनिर्मितत्वेन जिननवनस्याधाकर्मत्वान्नावेपि यतीनां तदंतर्वासे जगवति शरीरदौगंध्यादिहेतुकाशातनादोषप्रसंगाद् जक्तिनिमित्तं तन्निवासो मुनीनां निवारितः ॥ श्रतएवाति परिहारख्यापनाय चैत्यवंदनादिगतानां तत्रावस्थानकालपरिमाणलणनेन प्रकारांतरेणापि तनिवासप्रतिषेध स्तत्रैवागमेऽन्यधायि ॥ अर्थः-आ गाथाश्रोने विषे देव निमित्त नीपजाव्यु डे ए हेतु माटे जिन जवनने श्राधाकर्मपणुं नथी तो पण ते साधुनी समीपे जगवंत रहे बे ते शरीरनो जे दुर्गंध ए श्रादी कारणे करी श्राशातनादोष थवानो प्रसंग डे. माटे नक्ति निमित्ते जगवंतनी समीपे मुनिने रहेवानो निषेध कर्यो के एज कारण माटे अतिशे निषेध प्रसिद्ध करवाने चैत्यवंदनादिकने अर्थे चैत्यमा गएला जे साधु तेमने त्यां रहेवाना काल- परिमाणकयुं बे, बीजे प्रकारे पण चैत्यमां निवास करवानो निषेध तेहीज आगममां कह्यो ॥ टीकाः-यथा, तिन्नि वा कई जाव, थुश्श्रो तिसिलोइया॥ ताव तत्थ अणुनायं, कारणेण परेणवि ॥ अर्थः-त्रण श्लोकनी त्रण थोयो कहेवाइ रहे तेटलोज वखत त्यां रहेवानी रजा ले बाकी कारणे वधु रहेवाय तेनी जूदी वात ले
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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