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________________ ( १२८ ) - अथ श्री संघपटकः अर्थ:-वळी संयम रूपी शरीरने उपष्टंज करनार बे एटले टेको आपनार े, ए हेतु माटे ए प्रकारनो जे हेतुप्रयोग कर्यो ते घटित . म जे विशेषणे करीने असिद्ध बे, एटले हेतुग खोटो म जे पूर्वे कां ए प्रकारना न्याये करीने निरंतर धाकर्मनुं भोजन करनार यतिने संयमरूप शरीरनीज सिद्धि बेटे वळी श्रावकनी श्रद्धावृद्धि थाय ए हेतु माटे ए प्रकारनो बीजो हु प्रयोग कर्यो ते पण सारो नथी केम जे श्राधाकर्म जोजननुं ग्रहण करवुं ते गम विरुद्धपणे बाधहेतुनुं स्थान बे एटले ए अनुमान प्रयोग निर्वाध न कीये दृष्टांते ? तो जेम ब्राह्मणने सुरापान करवुं ए सुरा दुघनी पेठे नरम वस्तु बे ए हेतु माटे ए प्रकारनो अनुमान प्रयोग जेम बाधित बे तेम या अनुमान प्रयोग पण बाधित एटले खोटो बे. टीका :- तथापि प्रतिवाद्युपन्यस्तहेतुदूषणमात्रेण न स्वपक्ष सिद्धिरिति स्वपदे पिसाधनमुच्यते ॥ यतीना माधाकर्मजोजन मनुपादेयं षटजीवनिकायोपमर्द निष्पन्नत्वात् तथा विधवसत्यादिवत् ॥ तथा यतीना माधाकर्मजोजनमनोज्यं धर्मलोक विरुद्ध त्वाद्गोमांसवदिति ॥ एवंचोपपन्नमेतत्संघा दिनक्तं यतिना न नोक्तव्यमितिवृत्रार्थः ॥ ६ ॥ अर्थ: तो पण प्रतिवादिये स्थापन कर्या जे हेतु तेमां दूषण देखावा मात्रे करीने पोताना पहनी सिद्धि नथी यती माटे पोताना पक्षने विषे पण अनुमान साधनना प्रयोग करी देखाने बे. जे यतीने श्रधाकर्म जोजन गृहण कर योग्य नथी केम जे ब जीव निकायना मर्दन थकी उत्पन्न यवापां ए हेतु माटे जेम व जीवनि
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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