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________________ * अथ श्री संघपट्टका वळी संस्कृतनापानी शैलीथी तद्दन अजाण रहेता केटलाएक ढुंढकमार्गी जनो परमार्थ तपाश्या वगर आंखो बंध राखीने एम लखता रहे डे के संघपट्टकमां जिनवबनसूरिए जिनप्रतिमा मानवानी ना पामी , तो तेमणे जरा धीरज राखोने या पुस्तक एकवार आद्योपांत वांची जवु जोश्ये के जेथी तेमने पक्की खातरी थशे के जिनवबजसूरिए जिनप्रतिमा तथा जिनचैत्यने तो मगले ने पगले स्थापित कर्यां बे, बाकी फक्त तेश्रोए चैत्यमा यतिम्रोए वास न करवो ए बाबतनो ज पोकार करेल .. श्रा रीते या पुस्तक एकंदरे दिगंबर, श्वेतांबर, तथा ढुंढक ए त्रणे पक्षना अनुयायिउँने तथा अध्यात्म मार्गिनने पण वाचवायो. ग्य ले एमां जराए संशय नथी. हवे ा प्रस्तावना समाप्त करवा पहेलां अमारे लोकोमा चाखता थोमाक शब्दन्त्रमने नांगवानी पण खास जरुर जे. त्यां संघ शब्दनो मूल अर्थ ए के संघ एटले साधुऊनो समुदाय, अगर चतुर्विध संघ कहेवामां आवे तो साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकानो समुदाय गणाय. तेना बदले आजकाल फक्त श्रावकना समुदायने ज संघ कदेवामां आवे . प्रथम यात्रार्थे जे संघ नीकळतो तेमां साधुसाध्वीओ पण साथे रहेतां एटले तेना माटे संघ शब्द वापरवामां कंइ पण वांधो न इतो, पण हवे तो एकला श्रावकोना टोळाने पण संघ कहेवामां आवे , ते शब्दज्रम थएल लागे . माटे आ संघपट्टकमां वपरायला संघ शब्दनो अर्थ साधुसमूह अथवा च. तुर्विध संघ डे एम जाणवू.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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