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________________ 8. अथ श्री संघपट्टका (१२५) जे को वखत सारु मले कोइ वखत सारं न मले को वखत मुद्दल पण नमळे त्यारे साधु पुरुष तो नमळे त्यारे तपनी वृद्धि थाय ने मळे त्यारे देहनुं धारण थाय जे एम माने ते कारण माटे अहो मूढ पुरुष तो बालंबनना थानास मात्रे करीने केवल पोतानुं खौकमपणुं श्रागळ करी देखामता सर्व प्रकारे साधुनी क्रियानो त्याग करे ने पण खजाता नथी एटले ए पेटन्नरा एम लाज पामता नथी जे था वेष धारण करीने आते शुं करीए बीए ए मोटुं आश्चर्य . टीकाः-यदाह॥संघयणकालबलदूसमरूवालंबणाईघेत्तूर्ण। सबंचिय नियमधुरं, निरुज्जमाओ पमुंचंति. अर्थः-जे माटे शास्त्रमा कडं जे के केटलाक निरुद्यमी पुरुष संघयण तथा कालबल तथा दूषमारो ते रुप आलंबन गृहण करी सर्व पोताना नियमरुपी धुराने निश्चे मुकी दे. टीका:-यदपि श्राश्रमावृद्धयेशुभग्रहणमप्यदुष्ट मित्याद्यवाचि, तदपि विस्मृतजिनवचनस्य नवतोऽनिधानं॥शुक पिंमस्यदातृगृहीत्रोरहितत्वेन प्रागेव प्रतिपादनात्। तथाश्रमाबधुरस्यापि त्नरतपतेःशकटपंचशत्युपनीतस्निग्धमधुरस्वाकुनदयै यतिदानंप्रति जगवतायुगादिदेवन प्रतिषेधात् ॥ अर्थः चळी सुविहित लिंगधारी प्रत्ये कहे जे तमे का जे जे श्रावकनी श्रद्धा वधवाने अर्थे अशुभ ग्रहण करवामां दोष नथी तोपश विसार्या जिन वचन जेणे एवो जे तुं, ते तारूं कहे डे केम जे अशुरू पिमर्नु दान तो दाताने ने ग्रहण करनार ए बेने श्रहितनुं करनार बे. एम अमोए प्रथम प्रतिपादन कयु ए हेतु
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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