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________________ - अथ श्री संघपट्टका (6) सिद्ध थयो.... नही माटे, ने जो प्राणातिपातादिकनुं गीतार्थ आचरण करता होत तो ए हेतु विपक्षमा गयो कहेवात, माटे एम तो नहीं, तेथी अनुमाम प्रयोग निर्दोष सिद्ध थयो. टीका:-॥किंच, यतीनां चैत्यवासमंतरेण सांप्रतिकजिनजवनानां हानिः स्यातू ॥ तथाहि ॥ पूर्व कालानुजावादेव श्रीमंतोऽव्यग्रचेतसो देवगुरुतत्वप्रतिपत्तितरनिर्भरतया ह्येतदेव परं तत्व मिति मन्यमानाः श्रावकाश्चैत्यचिंत्यचिंता .. परमादरेणाऽकरिष्यन् ॥ सांप्रतं तु दुःषमादोषा नक्तंदिवं कु. . टंबसंबलचिंतासंतापजर्जरितचित्ततयेतस्ततो धावतां प्रायेण . दुर्गतानां श्राद्धानां स्वनवनेप्यागमनं दुर्लजमास्तां जिनमदिरे तथाच कुतस्त्या तत्समारचनादिचिंता तेषां . अर्थः-वली यतिने चैत्यवासविना श्रा कालनां जिननवननी हानि थाय. तेज देखामे डे जे पूर्व कालना महिमाथीज ने श्रीमंत लोक हता ते व्यग्र चितवाला न हता.ने देवगुरु तत्वनी घणी नक्तियो नरेला हता, ने ते देवगुरुने एज परमतत्त्व एम मानता. एवा जेने श्रावक ते चैत्य संबंधी चिंताने परम आदरव करता ने हालमा तो दुःखमा कालना दोषथी रात्रि दिवस कुटुंबन नरणपोषरा करवानी चिंताना संतापयोाकुल व्याकुल चित्तवाला थया . ए हेतु माटे चारे पास दोमता ने बहुधा दरिति एवा श्रावक लोकोने पोताने घेर परा आच पुर्वन डे तो जिनमंदिरे श्राववानी वाततो लेटे रही, माटे ते जिनमंदिरने समार, इत्यादिक चिंता तो तेमने क्याथीज होय ? टीकाः-श्रीमतां तु प्रतिक अमदाससवार विखासिनीपन
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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