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________________ द्वितीय अध्याय राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था १. राजनैतिक शासनतन्त्र भारतीय शासन तन्त्र प्राचीन धर्मशास्त्र के ग्रन्थों में 'राज्य' के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण चर्चा की गई है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक विशुद्ध रूप से राजशास्त्र का प्रथम ग्रन्थ है जिसमें राजनीति के विविध तत्त्वों को 'अर्थ' से सम्बद्ध करते हुए राजा एवं राज्य विषयक मान्यताओं को स्पष्ट किया गया है। भारतीय राजशास्त्र की यह विशेषता रही है कि उसमें सम्पूर्ण राजनैतिक सिद्धान्त 'धर्म' पर ही आधारित हैं। राजनीति पर 'धर्म' के इस गहरे प्रभाव से व्यावहारिक एवं राजतन्त्र सम्बन्धी सिद्धान्तों का स्वतन्त्र विकास नहीं हो पाया। इस सम्बन्ध में पी० वी० काणे महोदय की यह धारणा रही है कि भारतीय राजशास्त्रियों ने धर्मशास्त्र आदि ग्रन्थों में राजा के समक्ष जितने भी नैतिक आदर्श रखे हैं वे लगभग २००० वर्षों तक भारतीय इतिहास में एक ढाँचे के रूप में गतिशील न होकर स्थिर ही रहे हैं।' यहां तक कि भारतवर्ष में विदेशी शक्तियों ने भी अपने पांव जमा लिए किन्तु फिर भी युगीन चिन्तक 'राजा' के विषय में परम्परागत मूल्यों की ही पुनरावृत्ति करते रहे। भारतीय राजनैतिक चिन्तन का मूलाधार 'राजा' अथवा 'राज्य' है इसलिए आवश्यक होगा कि राज्य के सम्बन्ध में पहले आधुनिक समाजशास्त्रीय परिभाषाओं तथा विवेच्य युग से पूर्ववर्ती शासन-तन्त्र संबंधी मान्यताओं पर एक विहङ्गम दृष्टि डाली जाए। 'राज्य' विषयक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण - समाज शास्त्र के अनुसार समाज की विविध संस्थाएं' व 'समितियाँ' होती हैं। उनमें से राज्य भी एक प्रमुख ‘संस्था' है जो व्यवस्थित सङ्गठन के रूप में १. पी० वी० काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-२, लखनऊ, १९६५, पृ० ६६६ २. द्रष्टव्य-प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० ६-८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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