SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज निर्मित हुई' अत: वसन्तविलास महाकाव्य संवत् १२९६ (१२३६ ई० ) के बाद की रचना है । इस प्रकार वसन्तविलास महाकाव्य का समय ईसा की १३वीं शती होना समुचित प्रतीत होता है । 3 महाकाव्य सरस्वती की वन्दना से प्रारम्भ होता है । इसमें कुल १४ सर्ग हैं | प्रतिपाद्य विषय की दृष्टि से महाकाव्य में राजधानी - नगर वर्णन, ५ ऋतु वर्णन, ६ सूर्योदय, ७ चन्द्रोदय वर्णन, यात्रा वर्णन, केलि वर्णन, १० मन्त्ररणा ११ एवं युद्ध १२ वर्णन प्रादि चित्रित हैं । महाकाव्य का नायक वस्तुपाल धीरोदात्त एवं पराक्रमशाली गुणों से युक्त है । 13 वस्तुपाल की विजय यात्राओं तथा सामाजिक एवं धार्मिक क्रियाकलापों की कीर्तिकौमुदी, सुकृतसंकीर्तन वस्तुपालचरित आदि अनेक ग्रन्थों में वर्णन प्राप्त होता है । वसन्तविलास महाकाव्य भी वस्तुपाल सम्बन्धी ऐतिहासिक घटनाओं तथा तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों से अवगत कराता है। सोमेश्वर कृत कीर्तिकौमुदी एवं अरिसिंह कृत सुकृतसङ्कीर्तन ग्रन्थों का वस्तुपाल की मृत्यु से पूर्व संभवतः १२८६ ई० से पहले ही निर्माण हो चुका था । १४ तदनन्तर बालचन्द्रसूरि ने वस्तुपाल के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर एवं उपर्युक्त दो ग्रन्थों से प्रेरणा लेकर प्रस्तुत महाकाव्य का प्रणयन किया। तीनों ग्रन्थों पर तुलनात्मक दृष्टि डालने से ऐसा प्रतीत होता है कि वसन्तविलास महाकाव्य ने अधिकांश रूप से कीर्ति० तथा सुकृत० से पर्याप्त प्रभाव ग्रहण किया है किन्तु इन दोनों ग्रन्थों से प्रस्तुत महाकाव्य अधिक विस्तृत है । १५ १. वसन्तविलास, भूमिका, पृ० १ तथा वसन्त० १.७६ २. तु० – सम्वत् १२९६ महं० वस्तुपालो दिवंगतः', वसन्तविलास, भूमिका, पृ० ८ पाद टिप्पण- १ ३. वही, पृ० ११ ४. ५. ६. वसन्त ०; १.१ वसन्त ०, वही, सर्ग - वही, सर्ग - ६ वही, सर्ग ८ वही, सर्ग - १०, १३ १०. वही, सर्ग - ७ ११. वही, सर्ग - ३ ७. ८. ६. सर्ग - १ ६ १२ . वही, सगं - ५ १३. वही, १.७४-७५ १४. वही, भूमिका, पृ० १ १५. वही, पृ० ६-१०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy