SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज कुमारपाल के समकालिक होने के कारण द्वयाश्रय महाकाव्य का रचना काल १२वीं शती ईस्वी निश्चित है। द्वयाश्रय महाकाव्य में महाकाव्य के सभी लक्षण चरितार्थ होते हैं। प्रायः विद्वान् इसे पूर्णतः ऐतिहासिक महाकाव्य न मानकर अर्द्ध-ऐतिहासिक महाकाव्य स्वीकार करते हैं । मुनि श्री जिन विजय के अनुसार कुमारपाल के जीवन-सम्बन्धी वृत्तान्तों की जानकारी के लिए यद्यपि द्वयाश्रय महाकाव्य की प्रामाणिकता सन्देहातीत है तथापि कुमारपाल के जीवन व राज्य की सभी ऐतिहासिक घटनाओं का इसमें उल्लेख नहीं पाया है । (१०) अभयदेवदेवसूरिकृत जयन्तविजय (१२२१ ई०) अभयदेवसूरि कृत जयन्तविजय महाकाव्य का समय सुनिश्चित है। कवि ने काव्य के अन्त में दी जाने वाली प्रशस्ति में रचना काल का भी निर्देश किया है। इस प्रशस्ति के अनुसार अभयदेव का समय तेरहवीं शताब्दी ई० तथा जपन्त विजय महाकाव्य का समय १२२१ ई० ठहरता है । तीर्थङ्करों एवं सरस्वती देवी की स्तुति से महाकाव्य प्रारम्भ होता है । नगर वर्णन, सरोवर वर्णन, ऋतु वर्णन, युद्ध, मन्त्रणा,१° एवं युद्ध प्रयाण११ आदि वर्णनों से महाकाव्योचित वर्ण्य विषयों का सुन्दर विन्यास किया गया है। स्थान-स्थान पर कवि ने अपनी काव्य विषयक मान्यताओं का भी उल्लेख किया 9. Kāvyānuśāsana of Ācārya Hemacandra, ed. by Parikh, R.C., and Kulkarni, V.M., p. 61 R. Narang, S.P. Hema Candra’s Dvyāśrayakāvya, Delhi, 1972, pp. 46-52 ३. मुनि जिनविजय, राजर्षि कुमारपाल, पृ० २ ४. तु०-दिक्करिकुलगिरिदिनकर (१२७८) परिमित विक्रम नरेश्वरसभायाम् । द्वाविंशतिशतमान शास्त्रमिदं निर्मितं जयतु ॥ -जयन्तविजय, प्रशस्ति-१० ५. जयन्त०, १.१-७ ६. वही, सर्ग-१ ७. वही, सर्ग-१, तथा ८ ८. वही, सर्ग ७ ६. वही, सर्ग-१० १०. वही, सर्ग-७ ११. वही, सर्ग-११
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy