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________________ विषयानुक्रमणिका ६७३ श्रेणि गण १६६, २०० .. संगीत की चतुर्विध ध्वनियां ४१ . श्रेणिगण-प्रधान १६६, २३३ ।। संगीत के सप्त स्वर ४४०, ४४१ श्रेणिधर्म २८७ संगीत शाला (मन्दिर) ३४१ श्रेरिण प्रधान १६६, २३३ . संग्रहण २७२, २८० श्रेणि बल ७२ __दस ग्रामों का समूह २८० श्रेणि व्यवसाय २३२ संघ-चतुर्विध ३२६, ३३३ श्रेष्ठि-कुलिक-निगम २७५ संधाधिपति (उपाधि) ३४३ श्रेष्ठिनिगमस्य २७६ संचर (मार्ग) २७१ श्रेष्ठि-सार्थवाह-कुलिक निगम २५३ । संधि ७४, ७५, ७८, ८०, ८३, १५० २७५ संयोग केवली ३६२ श्रेष्ठी (पद) १२०, २७५, २७६ संवर (तत्त्व) ३८४, ३६०, ३६१ श्रोत्रिय १३८, ४२७ परिभाषा ३६०, इसके कारण श्वेताम्बर सम्प्रदाय ४०, ४८ ३६०, यह मोक्ष का मूल कारण त्रिंशदायुध १६६ षड्दर्शन ३७६ संवैधानिक समिति २६६, २७० षड्द्रव्य विभाजन ३८३ संश्रय ७५, १५० षड्विध बल ७०, ७१, ७२, २०६ संस्कार ३२१, ४०८, ४१०, ४११ द्रष्टव्य, सेना छह प्रकार की, संस्कृत भाषा १६, २३, ३५, ३६, इसकी व्याख्या शासन तन्त्र की ३६, ४६, ५७, १३४, १४१, दृष्टि से ७१, ७२ २३०, २६८, २६३, ३२०, षाडगुण्य ७३, ७४, ७५, ६७, १५०, ३६३, ४०५, ४३० ४३४ वैचारिक आदान प्रदान की सन्धि, ७५, ४३४, विग्रह ७५, भाषा ४०५, राष्ट्रिय स्तर की ४३४, यान ७५, ४३४, प्रासन सम्पर्क भाषा ३२०, ४०५ ७५, ४३४, द्वैधीभाव ७५, जैन/बौद्ध लेखकों द्वारा प्रोत्साहन ४३७, संश्रय ७५, ४३४, पर- ४०५, ४३०, शिक्षा की माध्यम राष्ट्रनीति के नियामक तत्त्व भाषा के रूप में ४३१-४३२, ७५, चतुर्विध उपायों का इसमें संस्कृत भाषा में लेखन ४३० अन्तर्भाव ४५ संस्कृति ८, ६, ३६, ६६ संगठित सभा/समिति २७४, २६० संस्था ४, ६, ८, ११, १२, २१,६५, संग्रह नय ३७६, ३८२ ६६, २६८, २६६ संगीत १५, १६१, १६२, १८४, . सकषाय जीव ३८६, ३६० १८५, १६३, ४३८, ४४२ सकाम निर्जरा ३६१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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