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________________ ६७२ शिल्पि ग्राम २४४ शिल्पियों का संघटन २३२ शिल्पि प्रमुख १२५ शिल्पि वर्ग २४० शिल्पी १३४, १६६, २०१, २०४, जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज शुद्र जाति १४०, २० शूद्र वर्ण १२७ २०८, २३३, २४०, २४६ शिल्पी ( रत्न) १४, २०१ शिल्पी दहेज में २०० शिव २६, ६१, ६४, ३१६, ३७०, ३७१, ३८०, ३६८ शिव के मन्दिर ३७१ शिवाराधना ३७२ शिविर (नगर) २८५ शिष्यों के स्तर ४१५-४१६ शीत दायक मकान २४८ शुक्ल लेश्या ३६३ शुभकर्म ३६५, ३९७ शुभाशुभ कर्म ३६०, ४००, ४०१ शुल्क ६७, २६१ शुष्क गोमय होम ३६८ शुष्क परिखा २४६ शूद्र ७२, १२७, १३३, १४०,१४२, २०२, २०४, २०७, २०८, २४१, ३२१ दो प्रकार के - कारु शूद्र २०७, २०८, अकारु शूद्र २०७, स्पृश्य शूद्र २०८, अस्पृश्य शूद्र २०८, शूद्रों के व्यवसाय २०७-२०६, शूद्र अन्नदा के रूप में २०८ शूद्रकर्षक १३६ शूद्र कुन्बी १४२ शूद्र कुर्मि १४२ शूद्र वर्ग २०७, २०६, २४१, ३१६ शूद्रों की शिक्षा ४२५ शूद्रों की साक्षरता ४०७ शुद्रों के व्यवसाय २०७ - २०६, २४१ शून्यवाद ३७६, ३६७ शून्य से जगत् की उत्पत्ति ३६७, जटासिंह नन्दि द्वारा शून्यवाद का खण्डन ३९७ शैव धर्म / सम्प्रदाय २६, २७, ३२२, शौनिक / श्वपच (कसाई) ३३३ पा० २३५, ३३० शौर्यपूर्ण गाथा ३१, ३६, ३७, ३६, ६३, ६४ श्रमणी ४६३ श्रमिक वर्ग २४० श्राद्धकर्म २०५ श्रावकाचार ३२५ श्राविका ३२६ श्रुतज्ञान ३८२ इसके दो भेद ३८२ श्रुति ३२१ शृङ्गारगोष्ठी १६२, ४८३ शृङ्गार रस ३३, ४५, ४६ श्रेणि २०६, २३२, २३३ पा० २४६, २७२, २७३, २७५, २८७ अठारह प्रकार की २३२, सताइस प्रकार की २३२, २३३ पा०, इसका सदस्य २७२, इसका संघटित स्वरूप २३३
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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