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________________ विषयानुक्रमणिका ६६६ वैश्यों के व्यवसाय २०७, २०६, व्यवसाय चयन २०४, २४१ २४१ कुल परम्परागत २०४, २४१, वैष्णव धर्म/सम्प्रदाय २६, ३२२, कुलेतर २०३, २४१ ३७२ व्यवसाय विभाजन २०२, २०६ व्यन्तर देव ३५०, ३५१ * व्यवसायात्मक बुद्धि ३७८ व्यवसाय १३, १८६, १६०, २०२ व्यवहार नय ३८२ २१४, २२१-२२३, २३२, व्याकरण ५३, ५७, १३४, ४११ २३३, २३७-२४०, २४१, २४४ व्यापार २०३, २०७, २२४-२२६, वर्णव्यवस्थानुसारी विभाजन २३८-२४०, २८५ २०२, २०६, २४१, ५४३, व्यापार का स्वरूप २२४, वैश्य ब्राह्मणों के व्यवसाय २०४, वर्ग का जन्म सिद्ध अधिकार २०६, २४१, ५४३, क्षत्रियों के २२४, खान, सेतु, वणिक्पथ, व्यवसाय २०६-२०७, २४१, व्यापारिक केन्द्र २२४, व्यापार ५४३, वैश्यों के व्यवसाय २०७- मार्ग-स्थल तथा समुद्र २२४, २०६, २४१, शूद्रों के व्यवसाय धातुरत्नों का व्यापार २२४, २०७-२०६, २४१, ५४३, तीन हाथीदांत का व्यापार २२३, माथिक वर्ग-ब्राह्मणसंघटन, विष का व्यापार २३६, लाख क्षत्रिय संघटन, वैश्य-शूद्र-संघटन का व्यापार २३६, क्रूरप्रकृति २०६-२०७, २४१, शास्त्रजीवी के व्यापार २३६, व्यापारिक व्यवसाय २०२, ५४३, शस्त्र- काफिले २२५, विदेशों से जीवी व्यवसाय २०२, ५४३, व्यापारिक सम्बन्ध २२६, कलाकौशलजीवी व्यवसाय नगरों के बाजार २२७-२२८, २०३, २०६, २४१, ५४३, विक्रेय वस्तुएं २२८, मुद्राद्रष्टव्य-उद्यान व्यवसाय, पशु विनिमय २२६, व्यापारिक पालन व्यवसाय, वाणिज्य भ्रष्टाचार २३१-२३२ व्यवसाय, शिल्प व्यवसाय, व्यापार विनिमय २२६, २४७, तकनीकी व्यवसाय, जैन धर्म २५१ में व्यवसाय विभाजन २३८, व्यापार सम्बन्धी शिक्षा ४०८ पन्द्रह प्रकार के निषिद्ध व्यव- व्यापारिक ग्राम २४३, २८२ साय २३८, २३६, द्रष्टव्य.. . व्यापारिक शुल्क १६२ 'सावध कर्म' एवं 'निषिद्ध व्यापारिक संगठन २५३, २६४, व्यवसाय २७०, २७३, २७५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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