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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज वैदिक विद्या परम्परा ४०६, ४२०४२१, ४२४ ४२८-४३७ दो मुख्य विभाजन, पराविद्या तथा अपराविद्या ४२०, उपनिषद् कालीन विद्याएं ४२०, ब्राह्मण कालीन विद्याएं ४२०, पुराणयुगीन विद्याएं ४२०, ४२१, मध्यकालीन विद्याएं ४२१, उच्चस्तरीय अव्ययविषय ४२८-४३७ वैदिक संस्कृति २५, २७, ३६, ३१४, ३१५, ३२१, ४११ वैदिक समाज व्यवस्था ४५८ वैदिक साहित्य २५, ४२१ वैद्य ( भिषज् ) १६७, १६८, २३५, ४४६, ४४६, ४५० वैमानिक देव ३५०, ३५१ वैयाकरण ४३० dafas / afse (कुली) २३५ वैवाहिक सम्बन्ध ४८६-४८८ वैशेषिक दर्शन २५ वैश्य २२, ७३, १२७, १४०, २०२२०४, २०७ - २०६, २४१,३१६, ३२१ इनके व्यवसाय २०७ - २०६, कलाकौशलजीवी के रूप में संघटना २०६, मुख्य व्यवसाय: वाणिज्य व्यापार २२४-२३२ वैश्य वर्ग २०७, २०४, २२४, २४१ ६६८ वेदान्त दर्शन ३५० वेशभूषा / वस्त्राभूषण २४२, २४६, ३२७, ३५५, २६-३१२, ३६२ वेश्म (दुमंजिले मकान) २४८ वेश्या / गरिका २२, १२२, १६०, १६२, २२६, २३६, २४७, ४७३, ४८१-४८३ वेश्याओं की जीविका ४८२ वेश्यालय १८८, २४७, ४८२ वेश्यावृत्ति २३६, ४८१-४८२, ५०६ इसका सार्वजनिक रूप से प्रचलन ४८१-४८२, सैनिक छावनियों में वेश्याओं के शिविर ४८२, नगरों में वेश्यालय ४८२, वेश्यालयों में सङ्गीत गायन तथा कामोत्तेजक चित्रांकन ४८२ वेश्यावृत्ति - कुल परम्परागत ५०६ वैक्रियक (शरीर) ३८८ वैदिक कर्मकाण्ड २५, २०५, ३१५, ३६७, ३६८ वैदिक कालीन नारी ४५८-४६० धर्म तथा शिक्षा के क्षेत्र में समानाधिकार ४५८, पैतृक सम्पत्ति के अधिकार से वंचना ४५६, नारी को पुरुषायत्त मानने की प्रवृत्तियों का उदय ४५६, दार्शनिक क्षेत्र में नारी से पुरुष को ऊंचा स्थान ४५६ वैदिक युगीन शिक्षा ४२५ ४०७, ४०८ वैश्यों की शिक्षा ४२५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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