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________________ ३५ साहित्य समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य साहित्य ने नवीन रूप में अथवा किसी नवीन संस्कृति को प्रश्रय देने के उद्देश्य से जब भी अपने इतिहास का प्रारम्भ करना चाहा तो धार्मिक चेतना के स्वर से ही उसका श्रीगणेश हो पाया था। हिन्दी साहित्य की धार्मिक चेतना का रीतिकालीन कृत्रिम काव्य-प्रधान साहित्य-चेतना में पदार्पण करना भी प्राचीन भारतीय साहित्यिक प्रवृत्तियों की ऐसी ही पुनरावृत्ति थी।' २. जैन संस्कृत महाकाव्यों के निर्माण की दिशाएं जैन संस्कृत साहित्य के लेखन का प्रारम्भ-जैन लेखकों द्वारा संस्कृत भाषा के माध्यम से साहित्य-सृजन की परम्परा बहुत प्राचीन रही है। जैन आगम ग्रन्थों के प्रणेताओं ने संस्कृत भाषा को भी प्राकृत के समान प्रशस्त माना है। जैन जन-श्रुतियों की मान्यताओं के अनुसार भी यह सिद्ध होता है कि जैन संस्कृति का पूर्व साहित्य संस्कृत भाषा में लिखा गया होगा किन्तु माज यह साहित्य उपलब्ध नहीं है इसलिए जन-संस्कृति से सम्बद्ध पूर्व साहित्य में संस्कृति का क्या स्वरूप रहा होगा प्रमाणाभाव के कारण स्पष्ट नहीं किया जा सकता है।3 उपलब्ध साहित्य के प्राधार पर प्राचीनतम जैन आगमादि ग्रन्थ प्राकृत में ही लिखे गए हैं और इसका प्रमुख कारण था साधारण बुद्धि वाले पुरुषों तथा स्त्रियों को भी जैन-धर्म तथा विचारों से अवगत कराना ।४ उपलब्ध ग्रन्थों के प्राधार पर प्राचार्य उमास्वाति का 'तत्त्वार्थसूत्र' नामक दार्शनिक ग्रन्थ जैन साहित्य का सर्वप्रथम संस्कृत ग्रन्थ है तथा विद्वानों ने इस ग्रन्थ का समय-निर्धारण प्रथम शताब्दी ईस्वी से लेकर तृतीय शताब्दी ईस्वी तक किया है। प्राचार्य उमास्वाति के 'तत्त्वार्थसूत्र' १. सावित्री सिन्हा, हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, सम्पा० डा० नगेन्द्र, काशी, सं० २०२५, पृ० १७ २. सक्कया पायया चेव भाणीईअो होति दोण्णि वा । सरमंउलम्मि गिज्जते पसत्था इसिभासिया ।। -अनुयोग द्वार सूत्र, गाथा, १२७ ३. मुनि देवेन्द्र, साहित्य और संस्कृति, वाराणसी, १९७०, पृ० ५५ ४. वही, पृ० ५५, पर तु० बाल-स्त्री-मन्द-मूर्खाणां नृणां चारित्रकांक्षिणाम् । अनुग्रहार्थ सर्वजैः सिद्धान्तः प्राकृते कृतः ॥ -दशवकालिक टीका का उद्धरण ५. द्रष्टव्य-'प्राचीन जैनाचार्यों का संस्कृत साहित्य को योगदान'- विश्व संस्कृत सम्मेलन के अवसर पर मुनि सुशील कुमार द्वारा दिया गया भाषण दिल्ली, २८ मार्च, १९७२, पृ० ११; तथा पं० सुखलाल, तत्त्वार्थसूत्र, पृ०६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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