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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज अवस्थाओं के साथ भारतीय महाकाव्यों के विकास क्रम की पृष्ठभूमि का भी निर्माण होता गया। भारतीय महाकाव्य लक्षणों के सन्दर्भ में सामाजिक चेतना का स्वरूप रामायण एवं महाभारत में महाकाव्य विषयक मान्यता यद्यपि स्थिर हो चुकी थी, तथापि महाकाव्य के शास्त्रीय स्वरूप का वर्णन करने का सर्वप्रथम श्रेय भामह को जाता है।' भामह के उपरान्त दण्डी,२ रुद्रट,3 भोजदेव,४ तथा हेमचन्द्र ने महाकाव्य लक्षणों का प्रतिपादन किया है। इन महाकाव्य लक्षणों में उत्तरोत्तर विकास होता रहा और यह विकास की दिशा समसामयिक काव्य के मापदण्डों एवं सामाजिक परिवर्तनों से भी विशेष रूप से प्रभावित रही है। भामह द्वारा प्रतिपादित महाकाव्य के प्रतिपाद्य विषयों में राज दरबार, दूत-सम्प्रेषण, युद्ध प्रयाण प्रादि वर्णन तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों के चित्रण को विशेष महत्त्व देते हैं । प्राचीन भारत का सामाजिक ढांचा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पर ही पूर्णतया आधारित था। इनमें से भी भामह के महाकाव्य लक्षण 'अर्थ' को ही महत्त्व देने के पक्ष में हैं। दण्डी ने प्रतिपाद्य विषयों में नगर, समुद्र, पर्वत, चन्द्रोदय, सूर्योदय, उद्यान, सलिल क्रीडा, मधुपान, विवाहोत्सव आदि वर्णनों को जोड़ते हुए महाकाव्य में मानव जीवन की विविध गतिविधियों के चित्रण के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। दण्डी तथा भामह के महाकाव्य लक्षणों के परिप्रेक्ष्य में यह देखा जा सकता है कि इन आचार्यों के समय भारत की राजनैतिक स्थिति युद्धों के कारण प्रशान्त थी इसलिए उनके लक्षणों में प्राय: राजनैतिक वर्णनों के प्रति अधिक झुकाव है। दण्डी के समय १. काव्यालङ्कार, १. १६-२३ २. काव्यादर्श, १.१४-१६ ३. काव्यालङ्कार, १६.२-१६ ४. सरस्वतीकण्ठाभरण, ५.१२६-३७ ५. काव्यानुशासन, अध्याय ८, पृ० ४५८ ६. तु०-'मन्त्रदूतप्रयागाजिनायकाभ्युदयैश्च यत् ।' ७. तु०-'चतुर्वर्गाभिधानेऽपि भूयसार्थोपदेशकृत् ।' ८. तु०–'नगराणवशैलतचन्द्रार्कोदयवर्णनैः । उद्यानसलिलक्रीडा-मधुपानरतोत्सवः ॥ विप्रलम्भविवाहेश्च कुमारोदयवर्णनैः । मन्त्रदूतप्रयाणाजिनायकाभ्युदयैरपि ॥' -काव्यालङ्कार, १.२० -काव्यालङ्कार, १.२१ -काव्यादर्श, १.१६-१७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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