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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज ३३९ - ३४०, इनकी स्थापत्य कला जैन मुनि धर्म ३१४, ३२५, ३२६, ३४०-३४१, इनका कलात्मक वैभव ३४१-३४२, कुमारपाल एवं वस्तुपाल द्वारा मन्दिरों का निर्मारण तथा जीर्णोद्धार ३४४३४७ ६२४ जैन मन्दिर - इन्द्रकूट ३४० इसका विशाल उद्यान ३४१, इसमें विविध प्रकार को शालाएँ ३४१, इसका विशाल परकोटा ३४१, इसमें भित्ति चित्रकारी ३४२, इसके स्फटिक मणिस्तम्भ ३४२, इसके धरातल पर मरिण - रत्नों की चित्रकारी ३४२ जैन मन्दिरों का निर्माण, ३४०-३४७ जैन महाकाव्य-भेद : ७, ३४, ३५. ३६, ४१-४५, ४८- ५०, ५६, ६४ अलंकृत ३०, ३६, ४१, विकसनशील ३६, संस्कृत अलंकृत ४०४२, ४५, ६८, ७०, ७३-७६, संस्कृत ऐतिहासिक ४२, ४६, संस्कृत चरित, ४४, संस्कृत चरितेतर ४५, ४६, संस्कृत सन्धान ४६ जैन मुनि १२१, २१४, २२६,२२८, ३२४, ३४५, ३५६-३६७, ३६६, ३८१ जैन मुनि प्रचार ३५६, ३६०, ३६२ जैन मुनि श्राश्रम ( शिक्षा केन्द्र ), ४२० जैन मुनि की शल्य चिकित्सा ४४८ ४४६ ३५-३६७, ४०४ भोग से विरक्ति की ओर ३५६, का सोपान अध्यात्मसाधना ३६०, सामाजिक प्रासङ्गिकता ३६०, समाज में प्रादरपूर्ण स्थान ३६० - ३६१, मुनि चर्या, ३६२३६३, तपश्चर्या ३६३-३६५, मुनि विहार ३६५ - ३६६ जैन मुनियों का संघ ३६६ जैन मुनियों को आहार दान ३४८ जैन मुनि वर्ग ५०६ जैन लोक ५११ अधोलोक, मध्य लोक, ऊर्ध्वलोक ५११ जैन विद्या परम्परा ४२२-४२५ ऋषभदेव द्वारा विद्यानों तथा कलाओं को शिक्षा ४२२, जैन आगमों की बहत्तर कलाएँ ३२४, परम्परागत जैन विद्याएंजातिविद्या, कुलविद्या, तर्पविद्या ४२३, विद्याओं के आठ निकाय ४२४, चौदहपूर्वो की विद्याएँ ४२३, जैन महाकाव्यों की सोलह विद्याएं तथा बहत्तर कलाएँ ४२४-४२५ जैन विद्याएं (प्राच्य ) ४२३ जैनानुमोदित विद्या का स्वरूप ४२३, जैन विद्यात्रों का वर्गीकरण ४२३, पितृपक्ष की विद्याएँ ४२३, साधुनों की विद्याएँ ४२३, विद्याधरों की
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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