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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज जनपद-निवासी २७०, जैन प्रागमों में नारी ४६२, ४६३ जनपद-शासक २७०,
स्मृतिकालीन आचारसंहिता से इस नाम की मुद्रा (सील), प्रभावित ४६२, २७६
स्त्री को सम्पत्ति मानने की जानपद मुद्रा २७६
अवधारण ४६२, स्त्रीविषयक जिनेन्द्र पूजा महोत्सव ३३७
हेय मान्यताएं ४६२, संघजिनेन्द्र प्रतिमा ३३२-३३४
व्यवस्था में पुरुष से नारी को जीर्ण सूर्प १०५
श्रेष्ठता ४६२-४६३, नारी जीव (तत्त्व) ३६३, ३८२-३६२, प्रशंसा के दृष्टान्त ४६३, ३६५, ३६६, ४००, ४०२
स्त्रीदासता की परिस्थितियां सामान्य लक्षण ३८४, दो प्रकार को उपयोगमयता ३८४, इसको जैन प्रागमग्रन्थ ३५, १३५, १३६, बहुबिध प्रवृत्तियां ३८४, इसके
२३०, २४२, २४५, २५७, .. भेद्र तथा उपभेद ३८५ द्रष्टव्य
२५८, २७६-२८२, २६०,३७६ _ 'मभव्य', 'भव्य' तथा 'मुक्त'
४२२ जीव
.. जैन कथासाहित्य ४३ .. ... जीव की उत्पत्ति ४००
जैन कल्प ३२६, ३५१, ३५५ जीव की सत्ता ४०३
। . . . . .: बारह प्रकार के :-सौधर्म, जीव के धर्म ४०२ जीव-शरीर-परिमाणवाद ३७६
ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, .. जीवाजीव तत्त्व ४०२
ब्राह्म, लान्तव, शुक्र, सहस्रार, जीवाजीवादि छह पदार्थ (मीमांसा) .
प्रानन्त, प्राणत, आरण, , प्रच्युत ३५१
. जीविकोपार्जन (आजीविका) ,२०३, जन
जैन कवि ४३-४७, ४०३. २३३, २३७, २३८
जैन कालविभाजन ३५६, ३५७ कुलागत आजीविका २०३
जैन मान्यता ३५६, काल की । कुलेतर-प्राजीविका २०३
विविध इकाइयाँ ३५६, भवजीवों की चौदह श्रेणियाँ ३६२ .
सर्पिणीकाल ३५६, उत्सपिणी
काल ३५७, छह उपकाल ३५६ जुपारी २३, १०७ जेठ मास ३६५ , ..
जैन कुलकर (कुलधर) ३५७ जैन अष्टद्रव्य पूजा ३३२ जैन कुलकरों की संख्या ३५७, जैन अष्टविधपूजन ३३६
३५८
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