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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज अलङ्कृत महाकाव्यों में प्रतिपादित सामाजिक आदर्शों का सम्बन्ध किसी संस्कृति विशेष से प्रभावित होता है । सम्भव है कि अलङ्कृत महाकाव्यों में दूसरी संस्कृतियों के सामाजिक मूल्यों के प्रति उपेक्षा दिखाई गई हो अथवा उनका खण्डन किया गया हो। भारतीय विकसनशील महाकाव्यों-रामायण एवं महाभारत में तत्कालीन भारतीय संस्कृति के प्रादर्श मूल्य आज भी भारत के भू-भाग में सम्माननीय एवं अनुकरणीय माने जाते हैं जबकि रघुवंश एवं किरात आदि महाकाव्यों को उतनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यता प्राप्त नहीं है। इन दोनों महाकाव्यों में ब्राह्मण संस्कृति के सिद्धान्तों के प्रति विशेष आग्रह है इसी प्रकार अश्वघोष के सौन्दरनन्द एवं बुद्धचरित महाकाव्यों को लें तो उनमें बौद्ध संस्कृति के प्रति विशेष पक्षपात प्रदर्शित किया गया है। इसी प्रकार जैन आलङ्कारिक महाकाव्यों में ब्राह्मणवाद, वर्ण व्यवस्था एवं यज्ञानुष्ठानों का घोर विरोध किया गया है। न केवल ब्राह्मण संस्कृति के सिद्धान्तों के प्रति ही इनमें उपेक्षा दिखाई गई है अपितु बौद्ध संस्कृति के दार्शनिक सिद्धान्तों का भी इनमें खण्डन किया गया है । इस प्रकार महाकाव्य की दोनों धारागों का सामाजिक मूल्यों एवं परिस्थितियों से न्यूनाधिक सम्बन्ध होता है। सामाजिक विकास की चार अवस्थाएं तथा महाकाव्य भारतीय महाकाव्य ही नहीं, अपितु विश्व के सभी महाकाव्य समाजशास्त्रीय वैशिष्ट्य से प्रभावित होकर ही निर्मित होते हैं । विद्वानों के अनुसार मानव समाज का उत्तरोत्तर विकास हुआ है। इसके विकास की चार निम्नलिखित अवस्थाएं स्वीकार की गई हैं-४ १. कबीला युग-कबीलों अर्थात् टोलियों में भोजन के निमित्त विचरण करना। २. जन समूह युग- कबीलों से कुछ ऊँचा उठकर एक बड़े जन समूह की भावना द्वारा भोजन प्राप्ति के नवीन साधनों का आविष्कार करना तथा एक व्यवस्थित पद्धति से जीवन यापन करना। ३. सामन्त युग-राज्य एवं विविध संघों की सहायता से कृषि का आविष्कार कर लेना। यह पूर्व सामन्त युग की विशेषता होती है किन्तु उत्तर सामन्त युग में कृषि तथा पशु पालन के द्वारा समाज पहले की अपेक्षा अधिक विकसित रहता है। 9. Lunia, B.N., Evolution of Indian Culture, Agra, 1960, p. 94 २. तु०-वराङ्गचरित, सम्पा० ए० एन० उपाध्ये, १९३८, बम्बई, सर्ग-२५ ३. वही, भूमिका, पृ० ७० ४. विशेष द्रष्टव्य-केशवराव मुसलगांवकर, संस्कृत महाकाव्य की परम्परा, वाराणसी, १९६६, पृ० ६२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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